Saturday 17 December 2016

मिशन : जवाब



ईशानी माँ के आपत्ति जताने पर एकदम चुप सी हो गयी थी क्योंकि वो आधुनिक विचारधारा की  लड़की होने के बावजूद उच्चश्रृंखल कभी नहीं हो पायी थी लेकिन पिताजी ने उसका समर्थन किया था बोले,
ये नौकरी सिर्फ नौकरी नहीं इसमें जीवन के अनुभव भी होंगे, ईशा को ये नौकरी ज़रूर करनी चाहिए.

ईशा हमेशा से ही अपने सेफ जोन के बाहर निकल कर निर्णय लेती है. दरअसल माँ पापा दोनों के ही कामकाजी होने के कारण बहुत बार बहुत से निर्णय उसने खुद ही लिए हैं, कम से कम अपने निर्णय उसके अपने ही होते हैं.
ईशा टीवी, सोशल नेटवोर्क से ज़्यादा लोगों से मिलना, भीड़ भरी जगहों मे जाना अधिक पसंद करती है. उसकी तलाश ऐसे लोगों या ग्रुप ही होने लगी जो लोगों से आमने सामने बातें करना पसंद करता हो. इसी तलाश ने यूनिवर्सिटी पहुँचते ही कॉलेज यूनियन का सदस्य बना दिया. माँ ने यूनियन का सदस्य बनी जानकर पहले पहल ये ही सोचा की शायद गर्ल्स कॉलेज की एकरसता दूर करने के लिए लड़कों से दोस्ती की है लेकिन पिता ने बिलकुल सही पकड़ा, ईशा के सपने और आदर्श भी बड़े हो रहे हैं इतने दिनों के एकांकीपन को दूर करने के लिए ही वो इसके ज़रिये बहुत से लोगों से एक साथ जुड़ना चाह रही है. उसके अन्दर लोगों को जानने की उनके साथ उनकी समस्याओं में खड़े होने की ललक है. पापा जब ये सब माँ से कह रहे थे तब ईशा ने भी सुन लिया उसे गर्व हो रहा था उसके पिता कितनी अच्छी तरह अपनी बेटी को समझते हैं. एक बार पापा ने यूँ ही बाते करते हुए उससे कहा था, सिर्फ इन्सान पहचानने से नही होगा अपने देश को भी पहचानना पड़ेगा. तभी से इस बात को ईशा ने सीरियसली लिया था.

लेकिन कुछ ही दिनों में राजनीति से उसका का मन उबने लगा, लोगों के दोहरे चेहरे से रूबरू होते ही उसे अवसाद सा घेरने लगा, जिसकी वजह से वो राजनीति से जुडी उसी ने उसे स्वार्थीपन और दोहरा चरित्र दिखा दिया. केतकी यूनियन की सबसे एक्टिव मेम्बर थी. हर जुलुस या भाषण में सबसे आगे रहती. कार्यक्रम खत्म होने के बाद सबसे पहले वो अपने फोटो देखती और चुन-चुन  कर ही अच्छे फोटोस फेसबुक और दूसरी जगह छपने भेजती. ऐसा करने के पीछे कारण था की पता नही कब किसी एन आर आई की नजर उस पर पड़े और उसकी किस्मत चमक जाये. ईशा  को बहुत आश्चर्य हुआ, उसने कह भी दिया तुम यूनियन, जायज़ मांगों के लिए करती हो या इसे शादी के विज्ञापन का मंच समझ कर फिर ईशा को आश्चर्य भी थी जिसका खुलासा उसने केतकी से पूछ कर ही कर लिया, तरुण से तुम्हारा रिलेशनशिप....  ये बात तो पूरा कॉलेज जानता है! केतकी कुछ देर चुप रह कर जवाब में बोली, तरुण मेरा पार्टनर है हर पार्टनर लाइफ पार्टनर नही हो सकता.
फिर भी एक रिलेशन रहते रहते .... ईशा ने अपनी बात अधूरी ही छोड़ दी.
जीवन में हर जगह ही पॉलिटिक्स है जहाँ खेल सको खेल लो. पॉवर हाथ में आने से ही मलतब है! पहले पंचायत चुनाव जितने के बाद पार्टी सोचती है ज़िला परिषद की जीत उसके बाद विधानसभा वहाँ जीत मिलते ही लोकसभा ...... जीवन में भी यही तो होता है पॉलिटिक्स से जीवन अलग है ही कहाँ!
 ईशा के लिये ये पह्ला और कड़वा सबक था.

बात उसके दिल को लग गयी थी उसने इस बात का ज़िक्र अपने कुछ ख़ास दोस्तों से भी किया था बात उड़ते उड़ते केतकी के कानों तक पहुँच ही गयी. उसके बाद से उसका का रवैया ईशा के प्रति एकदम बदल गया. अब उसका एक ही टारगेट रहता मौका मिलते ही ईशा को सबके सामने बेइज्जत करना.
ऐसे मुश्किल समय मे सिर्फ एक ही लड़का था जो ईशा के फेवर मे बोलता था. तुषार...

तुषार ब्रिलिएंट लड़का है लेकिन अपने हिप्पीनुमा कपड़ों और बाल की वजह से सभी को यही लगता कि वो अपने कैरिअर को सीरियसली नहीं लेता इसलिए कोई उसके समर्थन को भी ज्यादा तवज्जो नहीं देता था. लेकिन अपनी बातों, सिगरेट गांजा और गिटार के साथ बेसुरे गाने से पता नहीं कैसे उसने दोस्तों की अच्छी खासी भीड़ जमा ली थी.
इस बार भी छात्र यूनियन नेता के रूप में केतकी और ईशानी के बीच कैंडिडेट केतकी को ही चुना गया, ईशा को कोने में ले जा कर बताया गया की नेता निर्वाचन के समय ग्लैमर का भी ध्यान रखना पड़ता है जो की केतकी में है.
घर आ कर बहुत रोई थी, इसलिए नही की उसे कैंडिडेट नही चुना गया बल्कि इसलिए की क्रन्तिकारी बातों को सुन कर दोहराने के लिए भी एक ऑर्गेनाइजेशन लुक्स देखता है! उसे रोता देख पापा ने कहा था, ‘ इस चेहरे को देख कर लोग मेरी बेटी को पहचाने ये मैं नही चाहता, मैं चाहता हूँ तुम्हे तुम्हारे काम के लिए सब पहचाने. एक दिन ऐसा ज़रूर आएगा मुझे पूरा विश्वास है.’
काम करना चाहना या सोचना और काम करने मैदान में उतरना दो एकदम अलग बातें है इतने दिनों में ईशा ये बात समझ गयी थी. काम करने पर कदम कदम पर बाधा और षड्यंत्र का सामना करना पड़ता है. इतनी नक्लियत भरी है यहाँ देश का भला कोई करे भी तो कैसे? यही सवाल ईशा ने अपने पिता से भी किया था.
देश तुम्हारे लिए क्या है? कौन है? क्या तुम्हारे यूनिवर्सिटी के कुछ प्रोफ़ेसर और छात्र? नहीं ईशा देखना हो तो मई के महीने में बाहर निकल कर रिक्शा पर बैठना उस रिक्शेवाले को पचास को नोट पकड़ाना, देखना वो काट कर बीस ही लेगा बाकि वापस कर देगा. वो भी तुम्हारा देश ही है. यही जवाब उस दिन पापा से मिला था.

पिताजी की कही वही बात दिमाग में घूम रही थी जब स्काइप पर दिए इंटरव्यू का जवाब आया. उन्होंने शर्त रखी थी कि पहले दो साल उसे कभी छतीसगढ़ तो कभी झारखंड या फिर उड़ीसा के रिमोट एरिया में भी रहना पड़ेगा. तनख्वाह उन्होंने अच्छी ऑफर की थी. परीक्षाएं खत्म हो गयी थी और उसे एमफिल या पीएचडी करते हुए यूनिवर्सिटी में रहने की अब कोई इच्छा नहीं थी. वो घर से दूर या शहर से दूर जा कर नये लोगों में अनजाने लोगों में अपनी पहचान खोजना चाहती थी. माँ पिताजी स्टेशन छोड़ने आये माँ के साथ साथ पिताजी को भी देखा, उनकी भी आँखें भर आयी थी ईशा का भी मन हो रहा था कि कस कर उन्हें पकड़ ले लेकिन निर्णय को अब अंजाम देने का समय आ चुका था कमजोर पड़ कर उन्हें चिंता में नहीं डाल सकती थी इसलिए चुपचाप अपनी आँखों में आते आंसू को थाम लिया. ईशा ट्रेन में बैठ कर इन बातों को सोच रही थी.

 अब ईशानी के पास पिछली यादों से ज्यादा आने वाले भविष्य के बारे में सोचने को बहुत कुछ था. मध्यभारत के एक अनजान से स्टेशन पर ट्रेन रुकी और तुली अपने बैग सूटकेस के साथ उतरी, कई लोगों को उसने देखा अपनी बकरी और सर पर लकड़ी का बोझा ले कर जा रहे हैं. लहरों की तरह बने छत पर
मायावी धुप शाम होने का आभास देती हुई जाने की तैयारी में है मन मोहने वाले दृश्य देखते हुए ईशा मन ही मन तुलना करने लगी, फेसबुक और ट्विटर की बनायीं आभासी दुनिया से जिते जागते लोगों की दुनिया कितनी अलग है यही तो उसकी दुनिया है जो उसे पैदा होते ही तोहफे में मिली है यही तो उसका भारत है जहाँ वो काम करना चाहती है.

देखते-देखते दो महीने गुज़र गए इस बीच ईशानी ने आस-पास के बीस गाँव घूम लिए और उनके नाम भी याद हो गये है. उसका एन.जी.ओ जिस जगह पर था वो इलाका थोड़ा सा विकसित था. आस-पास के गाँव से कुछ बड़ा या ज्यादा खरीदना हो या डॉक्टर दिखाना हो तो वहीँ आते थे. अभी भी इन इलाकों के लोग आदिवासी जड़ी-बूटी और टोने-टोटके पर ही निर्भर हैं लेकिन धीरे -धीरे लोगों की सोच बदल रही है लोग नई पद्धति को भी अपना रहे हैं. इस बदलाव के पीछे जितना व्यक्ति के खुद का हाथ है उतनी ही भूमिका राष्ट्र की भी है ईशा को ऐसा ही लगता था. यूनिवर्सिटी में रहते हुए उसके दिमाग में जाने कैसे ये बात बैठ गयी थी की राष्ट्र वो राक्षस है जो इन्सान का सर चबा कर खा जाता है. लेकिन अपने एन.जी.ओ के लिए काम करते हुए जब उसने आँखों के सामने लोगों को अस्पताल में चिकित्सा पाते, सरकार द्वारा मुहैया करायी गयी सुविधाओं को पाते हुए देखा तो उसकी ये धारणा बदलने लगी. हाँ कुछ गफलत है, चोरियां है डकैती भी है लेकिन भारत ने अपने नागरिक के लिए कुछ नहीं किया ये जो लोग कहते हैं सरासर झूठ बोलते हैं.


तब ये मान लो की मैं झूठ कह रहा हूँ हाथ में खैनी रगड़ते हुए तुषार ने कहा. कितने दिन हो गए अपने घर मोहल्ला यहाँ तक की अपने शहर का कोई नहीं दिखा, ऐसे में तुषार को देख कर ख़ुशी में आपा ही खो बैठी थी. उसका आतिथ्य कैसे करे, क्या करे ये सोच कर ही परेशान हो रही थी ईशा. तुषार ने उसे समझाया, चिंता मत करो मैं सिर्फ आज ही तुमसे नही मिला, अभी यहाँ बहुत दिन रहना है इसलिए मिलना होता ही रहेगा.

ये मिलना हर बार एक झगडे का रूप ले लेता था जब तुषार कहता तुम यहाँ आई हो पैसोवालों के लिए काम करने, वो तुम्हे पैसा देते है उनके काम के लिए और मैं यहाँ आया हूँ तुम्हारे देश के सबसे गरीब तबके को बचाने.

गरीबों को क्या हम नहीं बचा रहे. दिन रात इन्ही कारणों से हम यहाँ दूर दूर गाँवों में भटकते हैं भोर होने से पहले निकल कर देर रात वापस लौटती हूँ sanitization से ले कर आदिवासी बच्चो का टीकाकरण सब कुछ करने का प्रयास कर रहे. इनकी ज़रूरतों को समझ कर सरकारी महकमों में चिठी-पत्री लगातार करती रहती हूँ. क्या ये सब काम नही.

जोर से अट्टहास कर उठता तुषार कहता वैक्सीन! किस चीज़ का वैक्सीन. अपने सरकार को दो न ऐसा वैक्सीन. तुमलोग यहाँ आये हो ज़मीन से जुड़े इन साधारण लोगों का जीवन नष्ट करने.

- मेरा देश.... मेरा देश क्या तुम्हारा देश नहीं?
- नहीं ईशा मेरा कोई देश नहीं...जहाँ इंसान पर अत्यचार हो रहें हो ऐसे किसी भी देश का मैं प्रतिनिधित्व नहीं कर सकता. मैं जानता हूँ तुम मन लगा के यहाँ काम करती हो. तुम्हारी तस्वीर अख़बार में भी छपी थी.
- मेरी तस्वीर? मैंने तो नहीं देखा!
- जानता हूँ , ये देखो कह कर तुषार ने एक पुराने अख़बार का टुकड़ा उसके सामने फैला दिया. उसमे ईशानी और उसके एन.जी.ओ के साथियों की तस्वीर थी नीचे प्रसंशात्मक कैप्शन.
- देख कर ईशा ने कहा मैं सचमुच नहीं जानती थी....
- उसकी बात काट कर तुषार बोला, लेकिन जानने के बाद पिघल मत जाना. याद रखना किसी व्यक्ति के लिए कुछ करना तभी सफल होता है जब उसे उसकी तरह ही रहने दिया जाये. बदल डालने की मुहीम न चलाया जाये. बदलने से वो फिर कभी अच्छा नहीं रह सकता.
- क्या तुम जानते हो, इस अंचल में बहुत से लोग बसंत आते ही आत्महत्या करते है, सिर्फ यहाँ ही नहीं झारखण्ड में भी यही देखा गया है. पहले मैं सोचती थी की ये लोग प्रेम प्यार के चक्कर में ऐसा करते होंगे लेकिन बाद में पता चला ,कारण कुछ और है. जाड़े में पेड़ के पत्ते झड़ जाते है और गर्मी से पहले पत्तों में प्राण नही आते. इन बीच के महीनों में जो लोग पत्ते चुन कर अपनी आजीविका चलाते हैं वो भोजन के अभाव में मारे जाते हैं. हमलोगों ने उन लोगों ले लिए भत्ते के लिए सरकार के पास आवेदन दिया है और रेगुलर इस बारे में काम करने के लिए हाजरी भी देते है, क्या ये गलत है? सौ बेड का एक अस्पताल खुलवाया है क्या ये गलत है? हाँ उन कामों को करने के लिए मुझे मुझे ऑफिस से एक तनख्वाह मिलती है लेकिन इससे काम तो.... कहते कहते ईशा की आवाज़ भर्रा गयी.
- मैं एक बार भी नही कह रहा कि जो तुम कर रही हो वो ख़राब है, तुम्हारी जैसी लड़की कभी कोई ख़राब काम कर ही नहीं सकती. लेकिन एक बार ये सोच कर देखो की जो तुम अच्छा सोच कर कर रही हो क्या वाकई उससे आगे अच्छा ही होगा?
- मतलब? ईशा आखों से आसूं पोंछ कर तुषार की ओर देख कर पूछी.
- ये जो चकाचक रास्ता तैयार हो रहा है. यहाँ क्या होगा? बड़े अमीर लोग आयेंगे फार्म हाउस बनायेंगे अपनी अय्याशी का सामान जुटाएंगे यही तो होगा न? इससे इन गांव वालों का क्या लाभ? जंगल को जंगल ही रहने दो. मुझे मेरा अतीत लौटा दो!
- लेकिन अतीत लौटाना यानि साँप के काटे आदमी को जलसमाधि देना और कोलेरा से गाँव के गाँव उजाड़ होने देना होगा.स्कूल कॉलेज कुछ नही होगा. पिछड़े हुए लोगों को और पिछड़ने देना होगा.
-एक गहरी सांस छोड़ते हुए तुषार ने कहा, तुम अपने सपनों को इन निरीह लोगों के जीवन में कॉपी पेस्ट करना चाह रही हो.पाँव में जूते मोज़े मुंह में सिगरेट और इंग्लिश स्लैंग ये मेरे तुम्हारे जैसे मध्यम-आय वर्ग के सपने हो सकते हैं उनके नहीं.क्योंकि यही लालच दिखा कर बार बार उन्हें ठगा गया है और यूरोपियन स्टाइल में उन्नयन करने के बहाने जंगल के किनारे हर कोने पर एक-एक झोपडी बना देंगे पुलिस पोस्ट के नाम पर जैसा की सारंडा में हुआ.
- तुम्हारा सर! ब्रिज बनाने के बहाने पूरे इलाके पर कब्ज़ा करने की चाल चली गयी है.
- लेकिन नदी का पानी तो भयंकर रूप लिया था पिछली बार कितने ही लोग मारे गये. मवेशी ख़त्म हो गये. स्थिति भयावह हो उठी थी.
- तो मरे.... इन्सान मरे! जानवर मरे! फसल बर्बाद हो. प्रकृति के हाथ नष्ट हो जाने दो फिर प्रकृति ही दुबारा गढ़ेगी सब कुछ. वनवासी वन में ही सुंदर लगते है.
- ब्रिलियंट तो सारे विदेशों में हैं! तुम अमेरिका क्यों नही गये? ईशा अचानक ही ये सवाल कर बैठी.
तुषार दो घडी चुप रहकर दोनों हाथों से अपन मुंह ढक कर रों पड़ा. उसके बाद स्तब्ध खड़ी ईशा के सामने अपना मोबाइल बढ़ा कर बोला देखो, कुछ समझ आ रहा है?
- ईशा मोबाइल हाथ में ले कर देखी. साफ़ कुछ भी नजर नहीं आ रहा था. सिर्फ एक फटे कपडे का टुकड़ा एक बोतल और बिखरे हुए खून के अतिरिक्त. उसने मोबाइल वापस कर दिया लेकिन कुछ बोल नहीं सकी.
- तुम्हारे सी.आ.र.पी.ऍफ़ ने क्या किया है देखो. आमजनों को माओवादी से सुरक्षा देने आये है लेकिन खुद ही भक्षक बने बैठे है. यहाँ ये नाबालिग लड़कियों का बलात्कार करते है उन्हें मार डालते है. इसी तरह रोज़ कितनी ही लड़कियां इनकी शिकार होंगी अगर हम समय रहते इनका विरोध कर इन्हें यहाँ से भगा नहीं देते.
- वो लोग तो यहाँ ब्रिज तैयार करनेवालों को सिक्यूरिटी देने के लिए तैनात किये गये है. ऐसा ही सुना है.....
- और जो आदिवासी लड़की रेप के बाद मार दी गयी उसकी सिक्यूरिटी कौन लेगा? इस बारे में सवाल नही करोगी तुम? तनख्वाह पर काम करती हो इसलिए उनके सपोर्ट में बात करोगी!
- तुली का शरीर मानो जल उठा, उसने कहा , नही! चुप नही रहूंगी. बताओ मुझे क्या करना होगा?
- मुझे नेतृत्व देना होगा क्योंकि जब एक लड़की किसी लड़की के अधिकार के लिए आवाज़ उठाती है तो विरोध का स्तर ही अलग होता है. तुम आगे रहना हमलोग पीछे रहेंगे, फिर देखते हैं वो शैतान जीतते है या हम! लेकिन ये सब करने में तुम्हारी नौकरी अगर.....?
- लात मारती हूँ ऐसी नौकरी पर! ईशानी उत्तेजना में उठ खड़ी हुई.
- मैं क्या झांसी की रानी को देख रहा हूँ अपने सामने? कहते हुए तुषार उठ खड़ा हुआ.
तुषार ईशानी के बिलकुल करीब आ कर खड़ा हो गया और प्यार से उसके गाल पर हाथ रखा. ईशा खुद को संभाल नही पाई और उससे लिपट कर रो पड़ी.

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तुषार से लिपट कर अपने प्यार का इज़हार करने के ठीक एक साल एक दिन बाद ईशानी  यूनिवर्सिटी से एम्फिल की क्लास से निकलते हुए गेट के पास उसने तुषार को देखा. इतनी देर में पृथ्वी अपनी धुरी पर तीन सौ पैंसठ दिन पूरे कर के आ गयी. और इस समय चक्र में ईशानी  का जीवन कितनी बार चक्कर खा-खा कर घुमा है अब उसे याद भी नहीं. लेकिन चक्कर खाते हुए उसने इसे-उसे कितनों को ही देखा पर कभी तुषार उसे नजर नहीं आया.

- देखती कैसे?..... मैं तो तब अमेरिका लौट गया था लेकिन मैं वहाँ से भी नजर रखता था, इन्टरनेट पर तुम्हारे बारे में आलोचना, प्रतिक्रिया और टीवी पर भी तुम्हारे बाईट. विश्वास करो तुम्हे फोन करने की बहुत इच्छा होती थी लेकिन तुम नाराज़ हो सोच कर फोन करने की हिम्मत नही कर पाता था. उसके बाद तो तुमने मोबाइल नम्बर भी बदल लिया. ईशानी और तुषार रेस्टोरेंट में आमने-सामने बैठे थे.
- मैं तुम्हारी बातों का कोई सर-पैर नहीं समझ पा रही, हाँ उस दिन इस तरह तुम्हारे भाग जाने का कारण भी नही समझ पाई थी.
- भागा नहीं, काम हो गया था इसलिए चला गया था. सुनो ईशा, अब तुम्हे सब कुछ सच बताने का समय आ गया है. मैं एक बहुत बड़े मल्टीनेशनल कंपनी में काम करता हूँ और उसी के सिलसिले में उस पिछड़े जगह मेरा कुछ दिनों का प्रवास था. वहाँ ज़मीन के नीचे सोना है विशाल भंडार, हमारी कंपनी के रिसर्च टीम ने ही उसे खोज निकाला है. अब अगर तुम्हारी सरकार और तुम्हारी दयालु एन.जी.ओ वहां जनकल्याण कार्यक्रम चालाये तो हम वो ज़मीन नीलामी में खरीदेंगे कैसे? भारत का सोना हमारे हाथ कैसे आएगा इसलिए वहाँ एक अशान्ति का माहौल तैयार करना बहुत ज़रूरी हो गया था.
- क्या बोल रहे हो तुषार! तुम्हे मुझे यूज़ किया? एक लड़की जो तुमसे प्यार करने लगी थी उसे तुमने....
- एक्साक्ट्ली! तुम्हारा मेरे लिए वो प्यार समझ पाया था तभी तो उसे इस्तेमाल कर पाया. इससे मेरी कंपनी का एक बड़ा खर्च बच गया.
- मतलब?
- एक लड़की जब प्रेम करने लगती है तो वो अकेली ही सौ के बराबर हो जाती है, ऐसा नही होता तो क्या तुम एक दूसरी लड़की के लिए सी आर पी ऍफ़ कैंप के सामने माइक ले कर चीखती? अनशन पर बैठती? तुम्हे ज़बरदस्ती उठाने आये पुलिस के गाल पर यूँ थप्पड़ मार सकती? मुझे किसी भी समय स्टेट्स वापस लौटना हो सकता था इसीलिए मैं जानबूझ कर किसी मामले में डायरेक्ट इन्वोल्व नहीं होता था. लेकिन तुम्हारे हर काम की खबर रखता था बस. तुम्हारी पहली तस्वीरें तो मैंने ही सोशल साइट्स पर वायरल की थी, एक फेक अकाउंट से.
- क्या बोल रहे हो?
- पूरी तरह से नकली नहीं थी. दारू पी कर लड़की के साथ हुए बवाल की तस्वीर में थोड़ा फोटोशॉप किया और मेरी बातों में फेर-बदल और पहुँच गया पुलिस के पास. इसका नेट रिजल्ट क्या आया जानती हो?
सरकार ने वहां से अपने सारे प्रोजेक्ट्स विथड्रा कर लिये और वहाँ पुलिस नही रखने पर लोकल चोर सारा बालू सीमेंट ले कर हवा..... बस अब कुछ ही दिनों में वो इलाका हमारा होगा. एक तीर से कितने शिकार कर लिए बोलो तो... बोल कर तुषार बेशर्मी से दांत निकाल दिया.
- हाँ एक शिकार मैं भी थी. मुझे सब कुछ छोड़ कर घर वापस लौटना पड़ा.किसी को कुछ भी न बता कर इस तरह आन्दोलन में उतर पड़ने के कारण मेरे एन.जी.ओ ने मुझे निकाल दिया और उस घटना की वजह से अभी नई नौकरी मिलना भी मुश्किल है. क्रांतिकारी को कौन नौकरी देगा?
- अरे! नौकरी मैं दूँगा. इस दुनियां में सच्चे क्रांतिकारियों के लिए कोई नौकरी है ही नही कारण वो सब नौकरी अब मेरे जैसे झूठे क्रांतिकारियों के कब्ज़े में है. बोल कर तुषार हंस पड़ा.
- लेकिन तुमने जो किया है उसके बाद....
- वो मेरा एक असाइनमेंट था, और इसीलिए आज मेरिलैंड में मेरा अपना एक बंगला है. मेरिलैंड कहाँ है जानती हो? वाशिंगटन के पास. मेरे पास दो गाड़ियां है मैं कितने डॉलर सैलरी पाता हूँ जानती हो?
- क्या करुँगी मैं जान कर?
- गृहस्थी तुम्हे ही संभालनी है तो तुम्हे ही जानना होगा अपने पति की इनकम.
- फिर से ब्लफ देना शुरू किये?
- नही नही ईशा, ब्लफ नही, सच कह रहा हूँ. तुम मुझे अपने माँ पापा के पास ले चलो मैं उनसे ही बात करूँगा इस बारे में. तुम्हे बहुत मिस करता हूँ, तुमने इतना विश्वास किया था मेरा और मैंने तुम्हे धोखा दिया. मैं अपनी बाकी ज़िन्दगी उसी तरह तुम पर विश्वास कर के बिताना चाहता हूँ जैसा तुम मुझ पर करती थी. मैं तुम्हारा साथ चाहता हूँ ईशा, तुम मेरे साथ मेरे देश चलो.
- तुम्हारा देश? अमेरिका?
- जो देश मेरी कीमत नहीं जानता, मेरे टैलेंट को नही पहचानता ऐसा देश मेरा कैसे होगा बोलो तो? हाँ, मैं जहाँ जन्मा हूँ वहां कभी-कभी घुमने फिरने आ ही सकता हूँ.
- इस बार भी कोई असाइनमेंट ले कर आये हो? बोल कर पहली बार वो हंसी.
- नहीं इस बार तुम्हे ले जाने आया हूँ. मुझे खाली हाथ मत लौटाना. आई लव यू ईशा!
- मैं भी तुमसे प्यार करती हूँ तुम्हारे साथ मेरिलैंड जाना भी चाहती हूँ बट ....

- बट??
- मैं पहले ही तुमसे शादी कर के वहाँ नही जाऊँगी. तुम्हे पहचानने के लिए मुझे थोड़ा समय चाहिए. मुझे ऐसे ही ले जाना चाहो तो ले चलो लेकिन तुम्हे हस्बैंड मानने में मुझे थोड़ा वक्त लगेगा.
- पागल हो क्या तुम. लोग शादी को ही स्वीकृति देते हैं और तुम हो की लिव-इन रिलेशन में रहना चाहती हो?
- ऐसी एक पागल को अपनी ज़िन्दगी के साथ क्यों जोड़ना चाहते हो?
- क्योंकि इस पागल के बिना मेरी ज़िन्दगी ही अधूरी है.
तुषार ने अपने हाथ ईशा के गाल पर रखा, लेकिन इस बार उसके शरीर में कोई हरकत नहीं हुई.

टीवी पर ईशानी को देख जैसे चौंकी थी उसकी माँ आज उसकी बातें सुन कर ठीक वैसे ही चौंक पड़ी उसके निर्णय को सुन कर. जो पिता उसके हर निर्णय में साथ देते थे आज वो भी इसके लिए राज़ी नहीं लेकिन ईशानी उस पर अटल रही.
इधर तुषार ईशा को साथ ले जाने के लिए हर संभव उपाय करना शुरू कर दिया था. ईशानी की सीवी कई यूनिवर्सिटी में अप्लाई किया तब जा कर एक यूनिवर्सिटी से कुछ स्कालरशिप के साथ एडमिशन की व्यवस्था हो पायी.
- इसके बाद तो मेरे लिए तुम्हारा बहुत रुपया खर्च होगा वहां, ईशा फोन पर बोली.
- रुपये नही डॉलर! लेकिन ये मत भूलो जो भी मिला है सब तुम्हारी वजह से. हाँ एक बात और इंडिया फिनडीया मेरे लिए मैटर नहीं करता बस तुम करती हो. इफ यू वांट देन ... शादी न होने तक तुम्हारे लिए हॉस्टल एकोमोडेशन भी देख लेता हूँ.
ईशा हंस कर बोली, इंडिया की लड़कियां अब काफी एडवांस हो गयी है मैं तुम्हारे साथ ही रहूंगी.
ईशानी की बात सुनकर पीछे खड़े उसके पिता हैरान हो गये और फोन के उस पार तुषार भी.

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 तुषार के हैरान होने के अभी कई मौके और आने वाले थे. अमेरिका की पुलिस जब उसे हथकड़ी पहना कर रास्ते से लेकर गाड़ी तक ले गयी. उस पल तक भी इस मायावी रहस्य से निकल नहीं पाया था. कम से कम दो साल के लिए जेल हो सकती है ये जानकर टूट गया था वो, तब उसने पूछा था आखिर मेरा अपराध क्या है?
- एक लड़की से बिना शादी किये उसे हायर एजुकेशन के सपने दिखा कर धोखे से इंडिया से अमेरिका ले आना और उसके बाद उससे मेड सर्वेंट के काम करवाना..... पुलिस ऑफिसर ने उसकी बात का जवाब दिया.
- क्या मतलब? तुषार के सर पर मानो आकाश ही टूट पड़ा.
  जवाब के बदले तुषार को कुछ फोटोग्राफ दिखाए गये. उनमे से किसी में ईशा तुषार के जूते पोलिश कर रही है तो किसी में उसके घर में खाना बना रही है तो किसी फोटो में बर्तन धो रही है वो भी डिश-वॉशर में न डाल कर अपने हाथों से और एक फोटो में तुषार ईशानी के हाथों से किताब छिन रहा था. बाकी तस्वीरें कब ली गयी उसे नहीं पता लेकिन किताब हाथ से लेने की घटना उसे याद थी. ईशा दिन रात यू.एस लॉ की किताबें पढ़ती थी तब एकाध दिन ऐसा भी हुआ की मैंने उसके हाथ से किताब छिन कर कहा था, अब सो जाओ और कितना पढ़ोगी आँखे ख़राब हो जाएगी लेकिन उस समय फोटो कैसे ली गयी ये समझ नहीं आ रहा? तुषार खुद से बुदबुदाते हुए कहा.
-ये तो नहीं बता सकता लेकिन ये जानता हूँ की उस लड़की ने फ़ेडरल लॉ बहुत अच्छे से पढ़ी है. आपका निकलना मुमकिन नहीं. बहुत ठंडी आवाज़ में पुलिस सार्जेंट ने जवाब दिया.
अमेरिका के अलग-अलग राज्य में अलग अलग नियम हैं मेरिलैंड में नियम थोड़ा ज्यादा ही सख्त है इसलिए तीन साल की सजा हो गयी उसे. तुषार सोच रहा था की उसे जेल भेज कर वो देश जा कर सबको मुंह कैसे दिखाएगी? जब जज ने उससे पूछा की वो अपना कोर्स पूरा करना चाहती है या नहीं तो उसने स्पष्ट जवाब दिया, उसे जितनी जल्दी हो सके अपने देश वापस जाना है.
इस पूरी घटना से वो इतना ही हतप्रभ हो गया था की कोर्ट रूम में वो कुछ भी नहीं बोल सका. सिर्फ एक बार ईशानी से पूछा था, तुमने ऐसा क्यों किया?
उस दिन ईशानी ने कोई जवाब नहीं दिया.
ईशानी के अपने देश लौट जाने के बाद जेल में कई हाथों से घूमते हुए एक छोटी सी पर्ची तुषार के हाथ आई थी.
उसमे एक ही लाइन हिंदी में लिखी थी.
‘मुझे गलत मत समझना प्लीज, ये मेरा एक असाइनमेंट था.’








Thursday 1 December 2016

तुम्हारा इंतज़ार है......

कहानी : तुम्हारा इंतज़ार है.....





अभी अभी गोविंदपुर स्टेशन पर उतरी. पहली बार इस स्टेशन पर उतरना हुआ. किसी काम से नहीं, आई हूँ एक वादा निभाने. किसी को पच्चीस साल पहले किया वादा. वो कहता था वादा रखना भी ईमानदारी है सिर्फ रूपये पैसों में ईमानदारी रखना ही जीवन का एक मात्र उद्देश्य नहीं हो सकता. आज मैं उससे सीखी इसी इमानदारी का मान रखने आई हूँ. हमारे संक्षिप्त से सम्बंधकाल में ज्यादा वादों का आदान प्रदान नही हुआ, जो हुआ उसमे से ये भी एक था.

जब मेरी ट्रेन आ कर रुकी तो स्टेशन एकदम सुनसान सा था लगा जैसे मेरे अलावा यहाँ और कोई है ही नहीं. एक चायवाला तक नज़र नहीं आया. इंतजार करना हो तो चाय का साथ सबसे बढ़िया होता है लेकिन वो भी नहीं. ऐसा लगा कि ये स्टेशन भारत का हिस्सा ही नही, चायवाला न दिखे ऐसा तो किसी स्टेशन में नहीं होता. अचानक कुछ लोग दिखाई पड़े तेज़ी से चलते चले जा रहे है, जैसे कुछ छुट न जाये ऐसी तेज़ी. अब अस्त व्यस्त सा एक छोटा झुण्ड बन गया. लगा इस झुण्ड में अर्जुन दिखाई पड़ा. क्या ये भ्रम था? जब किसी के बारे में ही सोचते रहो उसका ही इंतजार हो तो शायद ऐसा ही होता होगा. कितने साल गुज़र गए अर्जुन को नहीं देखा, जाने कैसा दिखता होगा अब. उस भीड़भाड़ में एक बार झांक आई लेकिन वो नहीं दिखा. स्टेशन आज भी वैसा ही है जैसा 25 साल पहले था निर्जन लेकिन खुबसूरत. प्लाटफॉर्म से ही ऊँचे पहाड़ और उस पर हरे हरे पेड़ दिखाई देते है. पेड़ के पत्ते भी कितने रंग ले कर रहते है ऐसा लग रहा जैसे पहाड़ किसी किशोर लड़के की तरह हेयर कलर से अपने बालों में कई रंग सजाए हों स्टेशन में भी कुछ पेड़ है जो इस समय फूलों से लदे है. इस सौन्दर्य को उस समय भी ऐसे ही देख कर मुग्ध हो गयी थी और तय कर लिया था की एक दिन ज़रूर यहाँ आऊँगी.


इंतजार का वक्त भी न यादों की रेल चलाता है. बैठे बैठे एक बार फिर 25 साल पुराने उस गुज़रे समय से फिर गुज़रने लगी. हम दिल्ली जा रहे थे बीच में ही गोविंदपुर स्टेशन पड़ता है. थोड़ी देर के लिए ट्रेन रुकी, मैं बाहर झांक कर देखने लगी ‘देखो कितनी सुन्दर जगह है, ऐसा सौन्दर्य की मन कर रहा यही उतर जाऊं. देखो न..’

अर्जुन झांक कर देखा और बोला, ‘ वाह! वाकई बहुत सुन्दर है मेधा. गोविंदपुर स्टेशन’  बाहर लिखे बोर्ड को पढ़ते हुए अर्जुन बुदबुदाया.
‘मैं यहाँ फिर आना चाहूंगी.’
‘कब?’ अर्जुन पूछा.
‘हम्म! आज से ठीक 25 साल बाद. तुम और मैं, चाहे जैसे भी हालात हों कुछ भी हो हम यहाँ ज़रूर आयेंगे. समझ लेना उस दिन हमारा प्रेम दिवस होगा. हमारे प्यार की 25वीं सालगिरह. हो सकता है तुम तब भी राजनीति में सक्रीय रहो और इस विशाल जनमानस में बसने की कोशिश में फिर मेरे लिए समय न मिल पाए. जानते हो तुम्हारे लिए मुझे हमेशा डर ही लगा रहता है. तुम याद रखोगे न आज की तारीख और ये प्रतिज्ञा..’
‘मैं वादा करने पर निभाता ज़रूर हूँ. बेईमानी करने के लिए भी हिम्मत की ज़रूरत होती है लेकिन उससे भी ज्यादा हिम्मत चाहिए भावनातमक ईमानदारी को बचाए रखने के लिए. मैं उसी ईमानदारी में विश्वास करता हूँ.’
‘घर में क्या बोल कर आई?’ अर्जुन ने सवाल किया.
‘झूठ बोल कर.... मैंने कहा की एक प्रोजेक्ट है उसी के लिए दिल्ली जाना होगा. अरुणा और अनुभा को बोल आई हूँ घर में फोन मत करना. तुम्हारी तरह तो मेरा कोई पार्टी का काम नहीं हो सकता न. क्या करूँ?’ मैंने मुस्कुरा कर जवाब दिया.

अर्जुन मेरे से एक साल सीनियर था, कॉलेज में आते ही रैगिंग में फंसी. मैं एक बहुत छोटे से एक शहर की लड़की, बड़े शहर की लडकियों से अलग हाव-भाव और पहनावे की वजह से तुरंत पहचान भी ली जाती थी और मुझमें शहरी लड़कियों जैसी न हो पाने के कारण एक हीनताबोध भी था जो व्यक्तित्व पर नज़र भी आता था. सीनियर लड़के लड़कियों ने तरह-तरह के सवाल करने शुरू किये और मजाक बनाना भी. मैं लगभग रो ही पड़ी थी तभी अर्जुन आगे बढ़ आया और मुझे सबके बीच से बचा ले गया. कॉलेज में उसकी अच्छी चलती थी स्टूडेंट यूनियन का लीडर था. सभी उसकी बात मानते थे. यहीं उससे मेरा पहला परिचय हुआ. छोटे शहर की लड़की होने की वजह से जो जड़ता मुझमे थी उसका उसे भान था उसने धीरे धीरे मेरी हीनभावना को कब आत्मविश्वास में बदल दिया पता ही नहीं चला. शायद उसका साथ ही मेरा आत्मविश्वास था. कॉलेज फंक्शन में हिस्सा लेना, गाना आता था लेकिन इतने लोगों के सामने गाने का साहस अर्जुन ने ही दिलाया था.

अर्जुन स्टूडेंट यूनियन का नेता था , वाम नेता. मैं हमेशा सोचती की इतने बड़े कॉलेज में पढने वाले लड़के लड़कियां ज़्यादातर अमीर घर से थे वो लोग कैसे वाम नेता को वोट देते है, लेकिन ये भी सच था की हर बार जीत वाम की ही होती थी. राजनीति में मेरी दिलचस्पी सिर्फ अखबार पढने तक ही थी पर अर्जुन के साथ ने राजनीति में सक्रीय भी कर दिया. कभी रैली तो कभी धरना देने के कार्यक्रम में अर्जुन के साथ जाने लगी. उस समय मैं कुछ ऐसी हो गयी थी की उसके किसी बात को ‘ना’ कहने की शक्ति मुझमे नहीं थी. कई बार ऐसा भी हुआ की पुलिस लाठी चार्ज शुरू हो गया चारो ओर अफरा तफरी का माहौल, ऐसे में अर्जुन उतनी भीड़ के बीच से भी ठीक मुझे निकाल कर दौड़ लगाते हुए पहले सुरक्षित स्थान पर पहुंचा कर फिर उस जगह पहुँच जाता.
मैं अर्जुन के लिए अक्सर डरी रहती थी पता नही कब पुलिस की गोली या लाठी लगे और.... उसे कुछ हो गया तो....
देखते ही देखते मैं कॉलेज से यूनिवर्सिटी पहुँच गयी. इतनी सक्रियता के बावजूद मैं अपनी पढाई समय पर पूरी कर लेती थी, लेकिन अर्जुन पढाई पर ध्यान नही दे पाता था. उसके नोट्स मुझे ही दूसरों से कॉपी कर-कर के उसे देने होते थे. वो बहुत मेधावी था लेकिन राजनीति करने के लिए उसने कभी पढाई पर ध्यान नहीं दिया बस हायर सेकंड डिवीज़न जितना ही अपना परसेंटेज बनाये रखता था. वो चाहता तो बहुत अच्छे नंबर ला कर टॉप भी कर सकता था किसी अच्छी जगह नौकरी का सुअवसर भी कोई उससे छिन नही सकता था लेकिन उसने सब छोड़ कर राजनीति में ही अपना भविष्य देखा. ये राजनीति भी न नशा होती है, एक बार लग गयी तो फिर छुटती नहीं.

अर्जुन और मैं कभी अकेले में नही मिले थे, जब भी मिलना होता कॉलेज कैंटीन में बहुत सारे लड़के-लड़कियों के बीच राजनीति पर ही बात करते हुए. हमारी अपनी कोई अलग बात नही होती थी. हाँ सबके बीच कभी कभी कभी हौले से वो मेरी ऊँगली छू लेता. और मुस्कुरा कर मेरी आँखों में झांक लेता था, जाने क्या हो जाता मैं घबरा कर आँखे नीची कर लेती थी. लेकिन तब भीड़ में  सबके बीच होते हुए भी सबसे अलग होने का अनुभव बिना पंखों के ही उड़ने की इच्छा जगाने लगता..

कॉलेज के विद्यार्थियों के बीच ही एक दुसरे के साथ थोड़ा सा बिताया गया समय हमारे लिए प्रेम भरे दिन थे. एक दिन भी अगर बिना बताये अर्जुन गायब रहे तो मेरे मन की भटकता ही रहता, कहीं से कोई खबर उसकी मिल जाये बस इसी तोड़ जोड़ में दिन गुज़र जाता. ऐसे ही एक दिन अर्जुन सारा दिन गायब रहा. कोई खबर नहीं कहाँ है. मैं बार बार कॉलेज कैंटीन की तरफ जाती की शायद् नजर आ जाये या किसी को उसके बारे में कुछ पता हो. लेकिन कुछ पता नही चला. शाम को भारी क़दमों से सोचते हुए चुपचाप बस स्टॉप की ओर चली जा रही थी की अचानक अर्जुन सामने खड़ा हो गया. हँसते हुए कहने लगा, ‘मेरे बारे में सोचते हुए चलोगी तो बस के अन्दर नहीं नीचे चली जाओगी. मैं भी मौत का सामान ही हूँ.मुझे हमेशा साथ ले कर चलने की चिंता मत करो.धमाका हो जायेगा.’ उस दिन उसकी बात पर और उसे देख कर मैं हंस नहीं पाई थी. एक अजनबी डर मन में घर बना लिया. आँखों में नाराज़गी और आंसू दोनों झाँकने लगे.अर्जुन उस दिन बस में न जा कर जबरदस्ती मुझे ऑटो में साथ ले गया. पूरे रास्ते मैंने उससे बात नहीं की. ऑटो रुका तो सामने पार्क था अर्जुन ने मुझे वहीँ उतरने को कहा. बिना कुछ कहे मैं चुपचाप वहाँ उतर गयी.

आज पहली बार कॉलेज कैंटीन के बाहर हम एक साथ बैठे थे. मेरा गुस्सा आन्सुनो में फुट कर बह निकला. थोड़ा शांत होने के बाद मैंने उससे कहा, ‘तुम बिना बताये ऐसे क्यों गायब हो जाते हो मन बेचैन होने लगता है. बुरी आशंकाओं से दिल बैठा जाता है लेकिन ये सब बातें तुम्हे समझ ही कहाँ आती है.’

पहली बार उसने मेरा हाथ अपने हाथो में लिया.कुछ देर हमदोनो चुपचाप उस लम्हे को महसूस करते रहे. खोमोशी अर्जुन ने ही तोड़ी, कहा – ‘ मेधा! अब तुम्हे इन चिंताओं से मुक्त होना होगा.अब मेरे और तुम्हारे रास्ते अलग होने का समय आ गया है. विश्वास करो मुझे भी तुमसे उतना ही प्यार है जितना की तुम मुझसे करती हो लेकिन इस प्यार के लिए जो क़ुरबानी देनी होगी वो मैं नहीं दे सकता. जितना प्रेम तुम्हारे लिए है ठीक उतना ही प्रेम मैं उन लोगों से भी करता हूँ जो समाज के सीसी दर्जे में दर्ज नहीं होते, हमेशा से शोधित वंचित और पल पल मरने को मजबूर हैं. मुझे उनके पास जाना होगा उनके साथ खड़ा होना होगा. उनके लिए लडाई लड़नी है. उनके जीवन के लिए संघर्ष करना है. इन सबके साथ मैं तुम्हे ले कर नहीं चल सकता. पता नही कब कौन सी गोली मुझे आ कर लगेगी और उस दिन सब खत्म. तुम्हे देने के लिए मेरे पास कुछ भी नहीं होगा. न घर न संसार न ख़ुशी... कुछ भी नहीं.
मैं तुम्हे कभी भी सुखी विवाहित जीवन का वादा नहीं कर सकता. बल्कि कहना चाहता हूँ तुम पढाई ख़त्म कर के अपना अच्चा भविष्य बनाना और एक अच्छे लड़के से शादी भी कर लेना. चाहो तो इसे भी मेरा आदेश ही समझ लो.
मुझे अब यहाँ से चले जाना होगा. एक नये लक्ष्य, नई जगह, नये नाम और पहचान के साथ.आज के बाद मेरा तुमसे कोई सम्पर्क नहीं होगा.जानने की कोशिश भी मत करना.मर गया तो शायद टीवी और अख़बार के ज़रिये तुम तक खबर ज़रूर पहुँच जाएगी.
तुम्हे छोड़ कर जाने के लिए तुम मुझे माफ़ कर सकोगी न मेधा!

बहते आंसुओं के साथ अर्जुन की सारी बातें सुनती रही थी. अंत में बस इतना ही बोल पायी, ‘तुमने कभी शादी का वादा नहीं किया और न ही कभी ऐसे सपने दिखाए जिसके लिए माफ़ी मांगों. तुम्हे तुम्हारे कर्तव्य के रास्ते से मैं कभी मुड़ने नहीं कहूँगी. जैसा तुमने कहा वैसा ही होगा.’

वो शाम ही हमारे रिश्ते की आखरी शाम थी. आज 25 साल बाद फिर इस स्टेशन पर उसके इंतजार में बीते दिनों के याद के साथ मैं.... लेकिन अर्जुन अभी तक आया क्यों नहीं वो भूलेगा नही पूरा विश्वास है फिर क्या हुआ?

ज्यादा समय नहीं लगा मुझे इन सवालों के जवाब पाने में। अगली सुबह के अख़बार के पहले पन्ने पर ही मेरे सारे सवालों के जवाब थे। सरकार के लिए मोस्ट वांटेड नक्सली अर्जुन पुलिस और खुफिया विभाग की सक्रियता से पकड़ा गया था। लिखा था कि प्रारंभ में उदारपंथी नक्सली विचारधारा से प्रभावित अर्जुन बाद में प्रशासन की दमन नीति के प्रतिकार में उग्रपंथी मार्ग की ओर मुड़ गया। माना जाता था कि सेना और पुलिस की टुकड़ियों पर हमले, सुदूरवर्ती इलाक़ों को जोड़ने वाले पूलों, सड़कों आदि को बम ब्लास्ट आदि से उड़ाने जैसी घटनाओं की योजना उसी के दिमाग की उपज थी। कहा जा रहा था कि गोविंदपुर स्टेशन पर भी वह अपनी किसी आगामी योजना की रेकी के लिए आने वाला था, जिसकी सूचना पुलिस को किसी मुखबिर से मिल गई और समय रहते उसे गिरफ्तार कर लिया गया। मैं जानती थी, और बातों में चाहे जितनी सच्चाई हो, यह बात झूठी थी। वो गोविंदपुर स्टेशन तो... वरना वो यहाँ बिना किसी सुरक्षा तैयारी के नहीं आता।

खैर, अपने तमाम कार्यों के बीच भी वह अपना वादा नहीं भूला तो इतना तो तय है कि उसके दिल के किसी कोने में मृदुल भावनाएँ, संवेदनाएँ आज भी जीवित हैं। वो उसे नहीं भूला अभी तक और न एक-दूसरे से किए वादे को ही। हाँ, इस वादे के पूरे होने की मियाद थोड़ी लंबी जरूर हो गई है। अपनी सजा पूरी कर जब वो बाहर निकलेगा, तब शायद अपना रास्ता बदल गरीबों-शोषितों की सहायता के लिए वो शायद कोई और राह तलाशे! उस राह पर चलते, अपनी मंजिल पर पहुँचते उसके चेहरे पर वही मुस्कान फिर वापस आयेगी जो मेरे मानस पटल में पिछले 25 वर्षों से छपी हुई है। उसकी इस मुस्कान को फिर एक बार देखने का मैं इंतजार करूँगी... मैं उस से फिर मिलूँगी। ये मेरा वादा है- मुझसे, उसकी यादों से, उसके भरोसे से... इस बार कोई समय सीमा नहीं रखी है, मगर खुद से ही किया है फिर एक मुलाक़ात का वादा.....