Monday 28 November 2016

पारम्परिक चिकित्सा पद्धति होडोपैथी

इस दुनिया में देखा अनदेखा इतना कुछ है कि कभी कभी हम संशय में पड़ जाते हैं किस पर यकीन करें और किसे मात्र संयोग समझ कर आगे उस पर और विचार या शोध न करें। चिकित्सा पद्धतियां भी इन्ही विश्वास अविश्वास के बीच अपनी राह बनाती आगे बढ़ रही जिससे मानव जाति लाभान्वित हो रही तो साइड इफेक्ट्स के झटके भी खा रही है। एलोपैथी, होम्योपैथी, आयुर्वेद,यूनानी और भी कितनी ही पद्धतियां है जिसके सहारे इंसान रोगमुक्त होने की कोशिश में लगा रहता है …….. एक पद्धति और भी है जो प्रचलित नहीं है क्योंकि इसे वनों में रहनेवाले जनजाति समूहों ने विकसित किया और अपने तक ही सिमित रखा। आज समय बदला और जनजातीय समूहों का अस्तित्व ही खतरे में पड़ गया साथ ही उनकी संस्कृति, परम्परा, चिकित्सा पद्धति भी।
हम कथित सभ्य समाज के लोग इन चिकत्सा पद्धति का मज़ाक उड़ाते है जंगली विद्या भी कहते हैं लेकिन कुछ बीमारी और जख्मों पर ये इलाज रामबाण जैसा काम करता है। दो ऐसे उदाहरण मेरी आँखों देखी है।।


उम्र लगभग 14-15 होगी जब थेदुअस टोप्पो गाँव में खेलते हुए पेड़ से गिर पड़ा था। ऊपर से चोट ज़्यादा नहीं थोड़ा बहुत छिल गया था लेकिन कमर सीधी नहीं हो रही थी और बाँया हाथ भी भयानक पीड़ा थी शायद टूट ही गया होगा। दर्द से बेहाल थेदुअस को उसके दोस्त किसी तरह उसके घर ले गए। इत्तेफाक ही था कि उसका पिता गांव प्रमुख तो था ही बहुत अच्छा वैद्य भी था। दूर दूर गाँव से लोग उसके पास इलाज के लिये आते थे।
पिता ने जंगल जा कर कुछ जड़ी बूटियां और बड़े बड़े पत्ते जमा किये उसके साथ बांस की पतली पतली छड़ी बनायी। बेटे के कमर और हाथ पर जड़ी बूटी का लेप लगा कर उसे बड़े पत्तों से ढक बांस की छड़ीयों को पूरे कमर और हाथ पर जंगली लताओं की मदद से बांध दिया। करीब महीने दो महीने यूँ बंधा रहने के बाद जब इसे खोला गया तो थेदुअस का हाथ बिलकुल ठीक हो चुका था। कमर का दर्द भी नहीं था और अब वो सीधा खड़ा भी हो सकता था लेकिन कुछ दिनों बाद पता चला की उसके कमर की चोट काफी गहरी थी जो की पूरी तरह से ठीक नहीं हो पाया था जब भी झटका लगता या बहुत भारी सामान उठाने पर उसे तीव्र दर्द शुरू हो जाता जो आराम करने पर धीरे धीरे चला जाता।
थेदुअस के पिता ने उसे सख्त चेतावनी दी थी कि कभी किसी भी प्रकार का नशा मत करना ये किया तो शरीर टूटने लगेगा और कमर दर्द बुरी हालत में आ जायेगा।
थेदुअस ने पिता की बात हमेशा याद रखी तो दर्द से भी बचा रहा लेकिन ढलती उम्र में बुरी संगत का असर ऐसा हुआ की शराब के नशे के साथ ही ड्रग्स का आदी भी हो गया। सचमुच ही उसका स्वास्थ्य तेज़ी से बिगड़ने लगा और अब हमेशा ही कमर दर्द से पीड़ित रहता है।
थेदुअस टोप्पो की उम्र आज करीब 54-55 वर्ष है, उसके पिता अब जीवित नहीं लेकिन आदिवासी पद्धति से किया उपचार का बेहतरीन उदाहरण मेरी आँखों के सामने है।
दूसरी घटना एक साल पुरानी है। पार्लर में काम करनेवाली एक आदिवासी महिला का बेटा अचानक ही मिर्गी दौरे से पीड़ित हो गया। अपने सामर्थ्य अनुसार उसने डॉक्टर दिखाया दवा भी की लेकिन परिणाम संतोषजनक नहीं मिल रहा था। तभी उसके किसी परिचित ने एक ऐसे पारम्परिक उपचार करनेवाले वैद्य की खबर दी जो दूर किसी जंगल के पास बसी बस्ती में रहता है। संगीता अपने बेटे को ले कर उसके पास गयी मात्र 4 बार जा कर दवा के डोज़ लेने के बाद अब उसका बेटा पूरी तरह स्वस्थ है अब कभी उसे दौरा नहीं पड़ा।
इस इलाज के बदले मूल्य भी अपनी इच्छानुसार देने की बात ऊस वैद्य ने कही थी। चाहे रूपये दो या खाने का कुछ सामान सब चलेगा।
ये है आदिवासियों की पारम्परिक चिकित्सा पद्धति जो कि लुप्तप्राय है क्योंकि अब न जंगल बच रहे कि जड़ी बूटियां उपलब्ध होंगी और न ही आदिवासियों को उनकी परम्परा के साथ रहने दिया जा रहा।
संस्कृति और परम्परा में बहुत सी उपयोगी चीजें भी छुपी होती है जिसे खत्म होने से बचाना चाहिए।

Monday 7 November 2016

असफल की डायरी


असफल की डायरी





सफलता और असफलता का मापदण्ड नितांत ही निजी विषय है। कहते हैं न ‘मन के हारे हार और मन के जीते जीत!’
भले ही दुनिया उच्च पदस्थ होना या समाज में आर्थिक आधार पर सम्माननीय होना ही सफल होने का पर्याय माने लेकिन असली सफलता तो संतुष्टि में हैं।

सिक्के के एक तरफ सफलता है तो निश्चित ही दूसरी ओर असफलता होती है। हम सफल होतें है तो खुश हो जाते हैं, श्रेय कभी खुद तो कभी किसी करीबी को देते हैं लेकिन असफल होने पर इसका दायित्व या कारणों के मूल में हम कभी जा पाते है? शायद नहीं ... शोक इतना अधिक होता है कि मूल कारण पर ध्यान कभी नहीं जाता।

असफलता के कई कारण होते हैं। कभी-कभी हम राह ही गलत चुन लेते हैं शायद निर्णय में असावधानी जिसे हम बदकिस्मती भी कहते हैं। कई लोगों की असफलता की कहानी जानने के बाद मुझे सबसे बड़ा कारण ‘भय’ ही लगा।
अनिश्चित भविष्य का भय  हमारे मन पर ऐसा असर करता है कि सब कुछ सही होते हुए भी हम कुछ कदम गलत उठा ही लेते हैं और यही कदम हमें असफलता की राह ले जाता है। डर के कई कारण होते हैं जिन्हें कई बार सही तरीके से समझ भी नहीं पाते तो कभी पता ही नहीं चल पाता कि अपनी तरफ से सारी तैयारी और योग्यता होने बावजूद असफलता क्यों हाथ आई!
मेरे जीवन में कई मौके आये जहाँ मुझे मेरी पसंद का ही कार्यक्षेत्र मिला
लेकिन छोटे-छोटे अवरोधों से लड़ने और उन्हें दूर करने की मामूली कोशिश के बाद हर बार मैंने हार मान ली, आगे बढ़ने के रास्ते खुद ही बन्द कर दिए।गुज़रते समय के साथ जब कभी किसी मुकाम पर न पहुँच पाने के कारणों की खोज करती हूँ तब हमेशा ही मेरा डर और काफी हद तक आलस्य को ही इन सब की वजह पाया।
अपने जीवन को एक निश्चित दिशा न दे पाने का जितना दुःख नहीं उससे कहीं ज़्यादा दुःख और अपराधबोध मुझे अपने एक निर्णय से है जिसे मैं अपने जीवन की सबसे बड़ी असफलता मानती हूँ मेरे एक निर्णय ने एक दूसरे जीवन की दिशा ही बदल दी। उसके सुनहरे भविष्य का दरवाज़ा मैंने हमेशा के लिए बन्द कर दिया। मुझे ज़िन्दगी ने कई मौके दिए हर बार मैंने ठुकरा दिया उसे ज़िन्दगी ने सबसे सुनहरा मौका दिया था उसकी योग्यताओं के अनुरूप लेकिन मैंने छीन लिया। उसकी मैं बड़ी बहन हूँ लेकिन उस वक़्त मैं उसकी मेंटर भी थी। मेरी इच्छा और मेरी सलाह(आदेश्) के बिना मानों उसके हर बड़े निर्णय पूरे ही
नहीं होते थे  :-(

घटना जितनी पुरानी होती जा रही दिल पर दाग उतना ही गहरा होता जा रहा है।
साल 2000 था। रांची के अख़बार में छपे विज्ञापन पर नज़र पड़ी। BSc आर्मी नर्सिंग कोर्स के लिए आवेदन आमन्त्रित किये गए थे। छोटी बहन किसी भी तरह का बहाना न कर पाये इसलिए विज्ञापन की कटिंग और फॉर्म  एक साथ उसे पोस्ट  से भेज दिया। पश्चिम बंगाल के 24परगना ज़िले के एक छोटे से जगह में रहने के कारण उसे फॉर्म भरने आदि के लिए बहुत सी परेशानियों से दो चार होना पड़ा। बिहार से माइग्रेट विद्यार्थी होने की वजह से उसे एफिडेफिट आदि भी जमा करना पड़ता, पर उसने बहन की इच्छा को अपना सपना बना लिया।
कभी-कभी मज़ाक से कहती दीदी, मेरा वज़न ही तो सिरिंज जितना है कहीं मुझे छांट न दे। मैं कहती पहले दिमाग का टेस्ट पास करो फिर फिजिकल टेस्ट की सोचेंगे, अभी उसमें टाइम है तब तक अच्छी डाइट ले कर वजन बढ़ा लो। इसी तरह की बातें हमारे बीच चलती रहतीं और वो परीक्षा की तैयारी के साथ-साथ ढेर सारा केला खाना और वजन बढ़ाने की हर संभव तरकीब में लगी रहती। तमाम बाधाओं को पार करते हुए रिटेन, इंटरव्यू, फिजिकल टेस्ट सब में मेरिट के साथ पास
हो गयी। जैसे-जैसे रिजल्ट निकलता वो मुझे खुशखबरी देती और मैं नाना
चिंताओं में घिरने लगती। आर्मी नर्स की ज़िन्दगी की कठिनताओं के बारे में कुछ खबरें इधर-उधर से मिलने लगीं और कुछ मेरे अपने पूर्वाग्रह बेचैन करने लगे थे। मुझे लगने लगा छोटी बहन सबसे दूर अकेली कहीं मुश्किल में पड़ गयी तो क्या करुँगी? कोई और नौकरी हो तो जब चाहे छोड़ दे लेकिन ये नौकरी तो यूँ ही छोड़ी नहीं जा सकेगी। दिन-रात मैं यही सोचती रहती और एक दिन जब उसका अपॉइंटमेंट लेटर आ गया और बहुत मुश्किल का सामना कर के किसी तरह एक टिकट वेटिंग में मुम्बई का मिला तो मैं अड़ गयी .... ज़िद पकड़ ली नहीं जाना है,’ जब टिकट भी कनफर्म्ड नहीं मिला तो समझना चाहिए वहां न जाना ही ठीक
होगा।‘ जैसे कमज़ोर तर्क दे कर उसे रोकने की कोशिश करने लगी।छोटी बहन बहुत रोयी, मुझे समझाने की बहुत कोशिश की; लेकिन मेरे अक्ल पर मानों पत्थर ही पड़ गए थे। मेरा डर मुझ पर इतना हावी हो गया था कि नकारात्मक बातों के अतिरिक्त मुझे कुछ और समझ ही नहीं आ रहा था। मेरी बातों ने बाकी सदस्यों पर भी असर किया सबने मिल कर बहन के सुंदर भविष्य का सपना बिखेर कर रख दिया।
बहन कई साल तक अपना टिकट संभाल कर रखी रही। आँखों में आंसू आते पर कभी मुझे दोष नहीं दिया। मैंने उसे अनजान मुसीबतों से बचाये रखने के लिए दूर जाने नहीं दिया लेकिन वक़्त ने किसके लिए क्या मुकर्रर किया है ये सिर्फ वक़्त आने पर ही पता चलता है।
माँ के कैंसर से लड़ने के दौरान सबसे ज़्यादा कठिन संघर्ष छोटी बहन ने ही किया।माँ को इलाज के लिए ले कर जाने से लेकर उनकी अंतिम सांस तक उसी ने सेवा की, सारी मानसिक यंत्रणा भी उसने ही सही।
उसके जुझारू व्यक्तित्व और स्वभाव के साथ सेवा भाव देखती हूँ तब मुझे अपने निर्णय पर पछतावा और बढ़ जाता है। अगर उसने आर्मी ज्वाइन की होती तो उसकी अलग पहचान होती। कैंसर पीड़ित माँ का संघर्ष थोड़ा आसान होता। मेडिकल सपोर्ट ज़्यादा मिलता।
आज भी वो अपने जीवन में खुश और संतुष्ट है, खुशहाल पारिवारिक जीवन है; लेकिन जो अवसर उसके जीवन को एक मुकाम तक पहुंचाता मेरी वजह से हासिल न हो पाया।
ये उसकी नहीं मेरी असफलता है।इस विफलता ने मुझे बहुत बड़ी सीख दी। मौका मिले तो पूर्वाग्रहों के कारण अति चिंता से उपजे भय के कारण अवसर को गंवा देना असफलता ही नहीं मूर्खता भी है।