Monday 3 April 2017

पुलिस की डायरी


हर दिन नये चोर, नये डकैत, नये अपराध के तरीके से दो चार होना हमारा रोज़ का काम है. कभी कभी अपराध के कारण इतने ह्रदय विदारक होते हैं कि समझ नहीं आता असली अपराधी कौन है. जो सामने दिख रहा हो वो या जो मूल में छिपा है वो.

रात फोन की घंटी बजी, खबरी से लीड मिली मिराजुद्दीन की लापता लड़की का सुराग मिला है, उसे हैदराबाद के एक बहुत बड़े बंगले में रखा गया है. खबर मिलते ही हम हैदराबाद के लिए टीम और वर्क स्ट्राटेजी बना कर निकल पड़े. हम चार लोग थे, हैदराबाद पहुँच कर वहाँ की पुलिस की सहायता से उस बंगले तक पहुँच गये जहाँ आयशा के होने की खबर मिली थी. आलिशान बंगला था. बिना किसी जद्दोजेहद के हम आसानी से बंगले में घुस गये लग रहा था, इस काण्ड में संलित्प लोग भाग गये थे पुलिस से पहले चोर को ही खबर हो जाती है. अंदर प्रवेश करते ही देखा यहाँ की सज्जा बहुत ही सुरुचिपूर्ण थी. हर कमरे को किसी बादशाही कमरे का रूप दिया गया था. कालीन से लेकर झूमर तक सब एक से बढ़ कर एक. वहीँ एक कमरे में हमें आयशा मिल गयी.

बहुत महंगे कपड़े, सर से पाँव तक सौदर्य परिचर्चा साफ़ झलक रही थी. करीने से बंधे हुआ बाल नेलपॉलिश लगे नाख़ून.... चौदह साल की बच्ची आयशा बहुत खुबसुरत युवती लग रही थी. जब हमने उसे आयशा कह कर पुकारा तो उसने कहा, उसका नाम आयशा नहीं और वो अपनी मर्ज़ी से यहाँ रह रही है किसी ने उसे अगवा नहीं किया. जब हमने उसकी फोटो जो उसे पिता से मिली थी उसे दिखाया और समझाने पर उसने स्वीकार किया कि वो आयशा ही है तब हमने और देर न कर फ़ौरन उसे साथ ले अपने शहर रवाना हो गये. उसे उसके पिता के हाथ सुरक्षित सौंप दिया गया.

दो दिन बाद उसका पिता मिराजुद्दीन पुलिस स्टेशन की बेंच पर मुंह लटकाए बैठा मिला. मैंने पूछा क्या बात है मिराज सब ठीक तो हैं न, आयशा ठीक है न? उसने लगभग रोते हुए कहा... वो तो ठीक है लेकिन जाने उसे क्या हुआ है जब से आई है एक ही ज़िद पकड़े बैठी है उसे यहाँ नही रहना, उसे वापस हैदराबाद जाना है. उन्ही लोगों के साथ रहना है जो उसे ले कर गये थे.

जान कर बहुत आश्चर्य हुआ, उससे कहा कल बेटी को ले कर आना देखता हूँ, मैं उससे बात कर के उसे समझाने की कोशिश करूँगा.

दुसरे दिन आयशा अपने पिता के साथ मेरे पास आई. नज़रे झुका कर चुपचाप बैठी रही, मेरे किसी सवाल का जवाब देने को राज़ी नहीं. बस एक ही रट, उसे हैदराबाद वापस जाना है. मैंने कहाँ, ठीक है लेकिन पता तो चले कि तुम वहां क्यों वापस जाना चाहती हो जहाँ जा कर लड़कियां किसी भी तरह अपने घर वापस लौट आना चाहती है.

उसने कहा, आपसे अकेले में बात करुँगी, अब्बा को बाहर जाने कहिये. मैंने मिराजुद्दीन को बाहर बैठने कहा.

आयशा ने बताना शुरू किया जो लोग मुझे हैदराबाद ले गये थे उन लोगों ने मुझे बहुत अच्छी तरह रखा था. अच्छा खाने को दिया, अच्छा पहनने को दिया. सोने के लिए एक पूरा पलंग मेरे लिए था. यहाँ तो हम छह बहने और अम्मी ऐसे सोती हैं कि सारी रात करवट भी नहीं बदल सकते, एक साइड हो कर ही सोना पड़ता है ज़मीन पर. इतना छोटा सा एक कमरा और नौ लोग उसी में रहते, खाते, सोते हैं. एक ही खाट है जिस पर अब्बा और छोटा भाई सोते हैं. खाना दो वक्त किसी तरह जुट जाता है. मुझे हमेशा भूख लगती रहती है लेकिन अम्मी डांट देती है, घर में कुछ हो तब तो दे. लेकिन जितने दिन मैं हैदराबाद में थी भरपेट खाना खाती थी, पलंग पर सोती थी, जिधर चाहे करवट बदलो पंखा लाइट सब कुछ था. कितना आराम और सुख था वहाँ. यहाँ तो सिर्फ भूख और गाली है बस... मुझे फिर से वहीँ जाना है साहब.

भूख लाचारी का कैसे फायदा उठाते हैं ये मानव तस्कर. अच्छी ज़िन्दगी का सपना दिखा कर उठा लाये फिर कुछ दिन अच्छा खाना कपड़ा और सुख के दर्शन भी करा दिए जब लड़की पूरी तरह उनके जाल में फंस गयी तब एक दिन किसी अमीर शेख या ऐसे ही किसी आदमी को कुछ रुपये के एवज में बेच दी जाती है, उसके बाद जो ज़ुल्मों का सिलसिला शुरू होता है उसके बारे में तो उन्हें अंदाज़ा ही नहीं.

उसकी सारी बातें सुनने के बाद एक बार फिर काउन्सेलिंग के लिए भेज दिया. वहां से लौटने के बाद वो काफी सामान्य नजर आ रही थी. दुबारा फिर कभी मिराजुद्दीन को पुलिस स्टेशन पर नहीं देखा. बाद में सुना कि आयशा की शादी उसी बस्ती के फल विक्रेता से कर दी गयी है.

मानव तस्करी के बहुत से हिंसक और दिल दहला देने वाले किस्से अक्सर सुनने को मिलते हैं लेकिन लड़की भूख और गरीबी से तंग आ कर अपनी मर्ज़ी से जाने को जब तैयार हो तो समझ आता है पेट की आग के आगे संभवतः शरीर के घाव भी मायने नहीं रखते.