महादेव दास में दीक्षा लेने के बाद इतना परिवर्तन आ जायेगा कभी सोचा ही नहीं था. परिवार का प्रत्येक सदस्य यहां तक की पूरे गाँव के लोग इस परिवर्तन को देख आश्चर्य में थे. दीक्षा लेने मात्र से ही कोई इतना बदल जाता है ये सबके लिए अद्भुत वाकया था. कुछ एक दिनों में ही ये इंसान क्या था और क्या हो गया.
सत्तर साल पार करने के बाद भी महादेव बाबू की शारीरिक अवस्था अच्छी ही थी, अभी बिना किसी सहारे के सीधा ही चलते थे. सर के बाल थोड़े बहुत ही पके थे. दांत भी अभी तक पूरे थे. सारा जीवन खेती बाड़ी करते हुए ही बिता, अपने हाथों से ये काम ना भी करना पड़ा हो लेकिन इधर-उधर बिखरी ज़मीनों पर खेती की देख-रेख में उन्होंने बहुत मेहनत की है. हो सकता है इतनी उम्र तक सक्रिय रहने के कारण ही उनका स्वास्थ्य अभी तक ठीक है.
महादेव बाबू का अच्छे इंसान के रूप में भी गाँव भर में सम्मान है. सदा ही मृदुभाषी, हंसमुख सबके प्रिय. छोटे-बड़े सभी उनका आदर करते हैं. एक और बात के लिए वो गाँव भर में प्रसिद्ध हैं.. उनकी सत्यवादिता. सभी जानते है कि वो कभी झूठ नहीं बोलते.
महादेव बाबू कई दिनों से सोच रहे थे, जीवन के बहुत साल तो गुजर गए जमीन जायदाद आदि तो अब उनके दोनों बेटे संभाल ही लेते हैं उन्हें अब पहले की तरह सोचना भी नहीं पड़ता। दोनों बेटे लायक हो गए है अब उन पर सारी ज़िम्मेदारी छोड़ कर ईश्वर-ध्यान में समय लगाना चाहिए। दीक्षा ले कर पति-पत्नी सांसारिक माया का त्याग करें तो सबसे उत्तम रहेगा. पत्नी के साथ इस बारे में परामर्श करने पर पत्नी ने कहा.. ‘ये तो आपने ठीक ही कहा, ईश्वर देवताओं में मन रमाना ही चाहिए वो चाहे कोई भी उम्र क्यों न हो! लेकिन पता नही आजकल आपको क्या हुआ है, अपनेआप को इतना बूढ़ा क्यों समझने लगे हैं! अभी तक तो बिना लाठी के सहारे ही चलते है फिर भी…’
महादेव बाबू बोले, ‘अरे नही, ऊपर से जितना भी चाकचौबंद नज़र आता हूँ, अंदर से घून खाने लगा है. आजकल आँखों से कम दिख रहा है और तुमलोग ही तो कहते हो मुझे कम सुनाई देता है। दोनों बहुएं भी मेरे पीछे कहती फिरती हैं कि मैं बहरा हो गया हूँ, ये बात क्या मैं नहीं जानता!
नाह!! सचमुच ही बूढ़ा हो गया हूँ, चलो अब हमदोनों ही दीक्षा ले कर मथुरा वृन्दावन तीर्थ कर आएं।‘
दीक्षा ले लें बोलने से ही तो नहीं हो जायेगा न, इसके सौ झमेले भी हैं. एक अच्छे गुरु की भी खोज करनी होगी, अच्छा गुरु ना मिला तो सब बेकार हो जायेगा. एक सच्चा गुरु ही साधना का सही मार्ग दिखा सकता है. इस गाँव में ऐसा गुरु कहाँ? एक बाबा जी हैं, वो भी दीक्षा देते हैं- लेकिन वो माँसाहार करते है. लाल वस्त्र धारण करते है, गले में रुद्राक्ष माला डाल कर जय माँ जय माँ जाप करते और घूमते रहते हैं. कुछ साल पहले किसी मामले में फंस कर महीने भर जेल में भी रह कर आये हैं। न न! ऐसे व्यक्ति को गुरु बनाने में महादेव बाबू का मन राज़ी नही हो रहा था और ये भी है कि वो बाबा जी माँ काली का मन्त्र जाप सिखाते है जबकि महादेव बाबू का खानदान पीढ़ियों से राधा-कृष्ण के भक्त हैं. अब वो माँ काली का मन्त्र कैसे ले ले!
दीक्षा लेने की इच्छा की बात उन्होंने अपने दोनों बेटों को भी बताई. बड़ा भूदेव, अपने पिता की तरह ही सीधा-सादा है. खेती बाड़ी और उसके हिसाब किताब के बाहर ज्यादा कुछ समझता नहीं। अपने परिवार के विषय में भी निर्लिप्त रहता है, हाँ उसकी पत्नी अवश्य ही चतुर और बुद्धिमति है. अपने बच्चों के स्कूल में भर्ती के लिए भी उसने भूदेव का इंतजार नहीं किया, उसने खुद ही आगे बढ़ कर स्कूल के सारे काम निपटाये. उसे पता था अगर वो पति के लिए बैठी तो बच्चे अनपढ़ ही रह जायेंगे. पिता के दीक्षा लेने की बात पर भी चुप ही रहा पर छोटा बेटा सूदेव खूब उत्साही नज़र आया.
सूदेव काफी चालाक-चतुर लड़का है. दो साल हो गए विवाह को लेकिन अभी तक कोई संतान नहीं हुई. पिता ने ही घर के नीचे एक किराने की दूकान खुलवा दी है पर दूकान मंदा ही चलता है. सूदेव, पिता के दीक्षा लेने की बात सुन कर बड़ा प्रसन्न हुआ और पिता के कान के पास मुंह ला कर चिल्ला कर बोला –‘अच्छा ही सोचा है आपने बहुत दिन तो मांस मछली खाए है अब वैष्णव गुरु से दीक्षा ले कर इन सबका त्याग कर दीजिये. बाकी का जीवन आप और माँ ‘राधे-कृष्ण’ का जाप करते हुए काट लीजिये.’
महादेव बाबू बोले –‘वो तो ठीक है लेकिन इसके लिए गुरु चाहिए वो कहाँ से मिलेगा?’
सूदेव बोला –‘उसके लिए आपको चिंता करने की ज़रूरत नहीं होगी, कल ही जा कर गुरु की खोज करता हूँ. मिल ही जायेंगे.’
सूदेव किसी भी काम को कल पर नहीं टालता. दूसरे दिन ही शहर की ओर निकल पड़ा. गुरु की खोज में कई जगह भटकने के बाद एक मठ में वैष्णव गुरु श्री कृष्णदास महाराज को खोज निकाला अपने माता- पिता के गुरु स्वरुप.
वैष्णव मठ के गुरु कृष्णदास महाराज बहुत ही अच्छे हैं, उम्र अस्सी के लगभग होगी. सूदेव आधा घंटा महाराज के पास बैठ कर ही समझ गया बहुत ही ज्ञानी पुरुष हैं, कितनी ही बातें उन्होंने ईश्वर, आत्मा- परमात्मा, जन्म-मृत्यु के बारे में कहीं. सारी बातें सूदेव को समझ न भी आई तो भी इतना तो वो समझ ही गया था कि उसके माता-पिता के गुरु होने जैसी योग्यता महाराज में है. सूदेव उस दिन ही दीक्षा की तारीख और समय सब कुछ ठीक कर के ही लौटा.
तय तारीख और समय पर महादेव बाबू सपत्निक पहुँच गये दीक्षा लेने, साथ में सूदेव भी था. तीनों सुबह- सुबह ही नहा धो कर खाली पेट और जो भी चीज़ें गुरु महाराज ने लाने को कही थीं वो सब वस्तुओं के साथ उपस्थित हो गये मठ में.
गुरु महाराज ने महादेव बाबू से पूछा, ‘आप दीक्षा लेने के लिए मन से राजी हैं न? ऐसा तो नहीं होगा कि दीक्षा लिए और चुपचाप घर बैठ गये. दीक्षा लेने के बाद जैसा-जैसा मैं बताऊँ वैसा-वैसा आपको रोज़ करना है. नियम से मन्त्र जाप करना होगा. प्रभु का नामगान करना होगा... कर सकेंगे न?
महादेव बाबू कोई उत्तर नहीं दिए बस चेहरे पर हलकी सी मुस्कान लिए गुरु की ओर देखते रहे.
सूदेव ही जल्दी से बोला, ‘हाँ हाँ, बाबा सब करेंगे वो राज़ी है.’
गुरु महाराज बोले, ‘तुम्हारे बोलने से नही होगा बेटा, बाबा को बोलना होगा. ये उनकी अपनी इच्छा और स्वीकृति होगी.’
गुरु महाराज ने फिर अपना प्रश्न दोहराया लेकिन इस बार भी महादेव बाबू निरुत्तर ही बैठे रहे. महाराज बोले, जवाब क्यों नहीं दे रहे बाबा, क्या मन्त्र जप और नियम पालन में कठिनाई है?’ सूदेव गुरु महाराज से बोला, महाराज, बाबा थोडा ऊँचा सुनते है, आदेश हो तो मैं उन्हें आपका प्रश्न दोहरा दूँ?’ गुरुदेव ने आज्ञा दे दी.
तब सूदेव बाबा के कान के पास चिल्ला कर बोला, ‘बाबा गुरु महाराज पूछ रहे हैं कि आप दीक्षा लेने के लिए राज़ी तो हैं न ?’
महादेव बाबू उत्साह से कह उठे, ‘हाँ ज़रूर! इसीलिए तो गुरु महाराज के पास आना हुआ.’
गुरु महाराज के निर्देश पर दो ब्रह्मचारी दीक्षा समारोह के सारे आयोजन व्यवस्था में लग गए. महाराज नियमानुसार महादेव बाबू के कान में मन्त्र उच्चारण किये, मन्त्र सुनते सुनते महादेव बाबू के शरीर में सिहरन सी होने लगी. उनका शरीर काँप उठता. ये देख गुरु महाराज महादेव बाबू से बोले, ‘तुम्हारा आधार उत्तम है, तभी मन्त्र सुनने मात्र से ही सर्वांग में सिहरन होने लगी. इस मन्त्र का नियमित जाप करने से बहुत जल्दी ही सिद्धिलाभ प्राप्त करोगे.’
इसके बाद महाराज महादेव बाबू की पत्नी को भी कान में दीक्षा मंत्रोचारण किये लेकिन उनके शरीर में ऐसी कोई सिहरन नहीं हुई.
महाराज दोनों पति-पत्नी से बोले, ‘अभी जो मन्त्र मैंने दिया ये अतिगोपीय है. इसे किसी के भी सामने मत दोहराना हमेशा अपने मन ही मन पाठ करना और गोपनीय ही रखना तभी इस मन्त्र की सिद्धि होगी.’
माँ-पिता के इस दीक्षा पर्व से सूदेव का मन ख़ुशी से भर उठा था वो खुद भी अन्न जल ग्रहण किये बिना ही गया था तो सोचा क्यों न इनके साथ ही वो भी दीक्षा ले ही ले, महाराज से ये पूछने पर उन्होंने कहा , ‘बेटा तुम तो विवाहित हो अब तुम्हारा इस संसार में अकेले कुछ भी करना अधूरा ही रहेगा. अगर दीक्षा लेनी हो तो पत्नी को भी साथ लाना अब तुम दोनों एक दुसरे के पूरक हो, धारक और वाहक भी. तुम किसी और दिन आना. सपत्निक दोनों को एक ही राह का पथिक बना दूँगा.’
मठ से लौंटने में बहुत देर हो गयी थी, महाराज बोले दीक्षा लेने के बाद मठ का भोजन किये बगैर जाने नहीं देंगे. उसके बाद माँ बाबा को नित्य क्या-क्या और कैसे करना है ,विस्तार से समझाने में भी काफी समय लग गया.
सूदेव को आज का ये समारोह बहुत आनंदित कर रहा था, हर विषय में उसका उत्साह थोड़ा ज्यादा ही था. लौटते हुए सूदेव बाबा से पूछा, ‘अच्छा बाबा, जब महाराज आपके कान में मन्त्र बोल रहे थे तब आप ऐसे बार-बार सिहर क्यों उठ रहे थे?’
जब से महाराज के मुंह से अपने अब्बा के आधार सम्बन्धी बात सुनी है सूदेव के अन्दर अलग ही पुलक जग रही है. बाबा से उनकी आध्यात्मिक अनुभूति सुनने की इच्छा से ही उसने ये प्रश्न किया. दो बार प्रश्न करने पर महादेव बाबू के कान में उसकी बात गयी. जो जवाब उन्होंने दिया उसे सुन कर सूदेव को थोड़ी हताशा ही हुई.
महादेव बाबू बोले, ‘पता नहीं क्या हो रहा था, जब महाराज मन्त्र बोलते तो मुझे कान के पास सुरसुराहट सी महसूस हो रही थी इसलिए सिहर उठ रहा था.’
सिर्फ गुदगुदी होने के कारण महादेव बाबू सिहर उठ रहे थे जान कर सूदेव को थोड़ी हताशा ही हुई लेकिन उसका मन पिता की बात मानने को राज़ी न हुआ उसे पूरा विश्वास था कि गुरु महाराज उसके पिता का आधार पहचानने में कोई गलती नहीं किये होंगे. उन्होंने कहा था कि विशिष्ट है. और दीक्षा के बाद पिता में ज़रूर कोई ऐसा परिवर्तन आया है जिसे वे स्वीकार नहीं कर रहे, नहीं तो उनके चेहरे पर ऐसा आनंद भरा तेज़ कैसे आया! एक दैवी आलोक उनके चेहरे पर दिखने लगा है. माँ ने भी तो दीक्षा ली है लेकिन उनमें तो ऐसा परिवर्तन नहीं आया.
सूदेव ने सचमुच अपने पिता को पहचानने में कोई गलती नहीं की. दो-एक दिन गुजरते-न-गुजरते ही महादेव बाबू एकदम से बदलने लगे थे. उजाला होने से पहले ही बिस्तर छोड़ देते, नहा धो कर तीन तल्ले में बने पूजाघर में जा कर जप और ध्यान करना शुरू कर देते. जैसा गुरुदेव ने कहा था वो बिलकुल वैसा ही कर रहे थे. लेकिन अपनी पत्नी को इसकी आदत न लगवा सके. वो अपने समय से ही शय्या त्याग करती थी. उनका तर्क था, –‘देखे नहीं, गुरु महाराज ने कहा था की पति पत्नी मिल कर ही एक होते हैं, अकेले का अस्तित्व नहीं, आप जप-ध्यान करो उसी में दोनों का कल्याण होगा. हम अलग थोड़े ही न हैं.’
महादेव बाबू के घर के तीसरे तल्ले पर एक कोने में पूजाघर है वहां उनके पिता ने ही राधा-कृष्ण की मूर्ति स्थापित की थी. इतने दिनों तक महादेव बाबू की पत्नी ही भगवान को फूल, जल, अन्न चढ़ाती आई थी, वो सिर्फ एक वक्त जा कर प्रणाम कर आते थे. लेकिन अब वो ज़्यादातर समय वहीं बिताते हैं. ब्रह्म मुहूर्त में उठ कर पूजा, जप-ध्यान सब ये करते हैं. आजकल महादेव बाबू दिखने में भी बदल गये है. सफ़ेद चन्दन का टिका नाक से ले कर माथे तक खिंच कर लगाते है. गले में तुलसीमाला और चेहरे पर हमेशा मधुर स्मित. कोई अगर उनसे मिलता तो दोनों हाथ जोड़ माथे के पास टिका कर कहते ‘हरे कृष्ण’.
कोई कुछ कहे तो उसका उत्तर नहीं देते बस अपने में ही रहते है.
महिना पूरा होते-न-होते ही महादेव बाबू में एक और परिवर्तन दिखने लगा. वो अपने बिस्तर पर लेटे-लेटे अचानक उठ बैठते है और जप करने लगते हैं, उनकी पत्नी आजकल अपने दोनों पोतों को ले कर दूसरे कमरे में सोती है इसलिए किसी को भी कोई समस्या नहीं उनके जप-तप से. लेकिन परेशानी शुरू हुई खुद महादेव बाबू को. जब भी वो ध्यान करने बैठते है उन्हें असंख्य झींगुरों के बोलने की आवाज़ सुनाई पड़ती है, अवश्य ही आवाज़ झींगुर के आवाज़ जितनी तीव्र नहीं होती, बहुत ही महीन सी आवाज़ है. ये आवाज़ धीरे-धीरे ध्यान के समय के अतिरिक्त जब भी कहीं अकेले होते है तब ही उन्हें सुनाई पड़ती है. रात दिन कभी भी. कुछ दिन तक इस रहस्य को अपने तक रखने के बाद उन्होंने ये बात सूदेव को बताई बहुत ही चुपचाप सबसे छुपा कर.
सुनकर सूदेव सोचने लगा. इसका मतलब गुरु महाराज ठीक ही बोले थे, बाबा का आधार बहुत ही उन्नत है. इसलिए तो इतने कम दिनों में ही लगता है बाबा की आत्मिक उन्नति होने लगी है. ज़रूर ये कोई अध्यात्मिक उन्नति का ही लक्षण है. फिर भी अपने संदेह की पुष्टि के लिए वो दूसरे ही दिन गुरुदेव के पास हाज़िर हो गया अपने मित्र महेश को ले कर.
सब सुनकर गुरुदेव बोले, ‘जब मैं मन्त्र दे रहा था तभी समझ गया था ये कोई ऐसा-वैसा व्यक्ति नहीं. अच्छी संगत और चिन्तन के लिए परिवेश मिले तो वो बहुत ही उन्नत साधक बन कर उभरेंगे. जिस आवाज़ को सुनने के लिए मनुष्य जन्म-जन्मान्तर तक तपस्या करने के बाद भी सुनने में असमर्थ होता है ये वो आवाज़ अभी से ही सुन पा रहे है. ये किसी साधारण मानव के लक्षण नहीं. कितने कम समय में ही वो विश्व ब्रह्मांड के घूर्णन की आवाज़ सुन पा रहे हैं. हमारा ब्रह्मांड ग्रह नक्षत्र सब अपने कक्ष में घूम रहे हैं इस गति की भी एक ध्वनि है जो किसी को सुनाई नही देती लेकिन जो साधक हों वो ध्यान से शक्ति पा लेते हैं. तुम्हारे बाबा को वही शक्ति प्राप्त हुई है बेटा. आज तुमसे ये संवाद पा कर मैं खुद को धन्य समझ रहा हूँ.
गुरुदेव के पास अपने पिता की विलक्षण उपलब्धि की घोषणा सुनने के बाद सूदेव भी मन-ही-मन गर्व से भर गया. बगल में बैठे महेश को कोहनी से टुहुक कर बोला, ‘क्या रे कुछ समझा?’
महेश की भी सूदेव की तरह चतुर और गाँव में बुद्धिमान नाम से ही ख्याति है. जब-तब लोगों को परामर्श भी दिया करता है और लोग उसे मानते भी हैं. महेश बचपन से ही महादेव बाबू का सम्मान करता है. उनके इस परिवर्तन के बारे में जानने को उसे भी कम कौतुहल नही. इसलिए वो भी गुरुदेव से पूछ बैठा, ‘ तो क्या अब से हम ताऊजी को साधू ही समझें?’
गुरु महाराज बोले, ‘ अवश्य ही, सिर्फ साधू ही क्यों उन्हें तो महात्मा बोलना ही उचित होगा. तुमलोगों को उनका सानिध्य मिल रहा है, धन्य हो तुमलोग.’
साभार:गूगल
गाँव पहुँच कर महेश महादेव बाबू के महात्मा होने की खबर को प्रचारित करने के महान कार्य में लग गया. जब-जहाँ जिसके साथ भी मुलाकात होती ये खबर बताना नहीं भूलता. खबर कानोंकान फैलते-फैलते पूरे गाँव को पता हो गयी. घर में सभी को ये बात सूदेव ने ही बतायी, सुनकर सबने महादेव बाबू को देवतुल्य ही बना दिया. घर में काम करने वाली रमा तो उनके दोनों पाँव पकड़ कर रोने ही लगी बोली, ‘बाबा आप मेरी तनख्वाह नहीं बढ़ाये इसलिए पता नहीं कितनी ही गालियाँ आपके नाम पर मैंने दी हैं तब मुझे क्या पता था आप देवता हो, मुझे माफ़ कर दीजिये.’
महादेव बाबू इतने सब के बाद भी पहले जैसे ही हैं उनके आचरण में कोई परिवर्तन नहीं. पहले की तरह ही चेहरे पर मुस्कान बरक़रार रहती और रास्ते में कोई मिल जाये उन्हें प्रणाम करे तो प्यार से उसके सर पर हाथ फेर कर हरे कृष्ण ही कहते.
कुछ दिन बीतते ही महादेव बाबू फिर से एक नई अलौकिक अनुभूति से गुजरने लगे. आजकल जो कुछ भी वो कहते उसकी प्रतिध्वनि सुनने लगे थे. एक बार यदि हरे कृष्ण बोले तो वो खुद उसे दो बार सुनाई पड़ने लगा था. पहले से ही वो कम बोलते थे लेकिन इस नयी अनुभूति के कारण उनका दूसरों से बात करना और मुश्किल हो गया था. वो जो भी कहते उसकी प्रतिध्वनि के कारण सामनेवाले ने क्या जवाब दिया ये उन्हें समझ ही नहीं आ रहा था. बाध्य हो कर उन्होंने अपनी समस्या सूदेव को बताई.
अतिउत्साही सूदेव महेश को ले कर भागा-भागा पहुँच गया गुरुदेव के पास. गुरुदेव सब सुनकर हलके से मुस्कुरा कर बोले, ‘तो महादेव इतनी जल्दी गुरु हो गये.’
‘क्या गुरु हो गये?’ सूदेव ने गुरुदेव से प्रश्न किया.
हाँ, तुम्हारे बाबा अपनी अंतरात्मा की आवाज़ प्रतिध्वनित रूप में सुन रहे हैं. ये तो क्षुद्र देह के लिए इस जगत में महामिलन जैसा है. महादेव की अंतरात्मा परमब्रह्म से मिल रही है इसीलिए ऐसी प्रतिध्वनि उसे सुनाई पड़ रही है.
सूदेव और महेश ने समझ लिया कि अब और देर नहीं करनी चाहिए. उनके गाँव में एक ऐसे महात्मा का वास हो रहा है जिनका परम आदर और सम्मान होना चाहिए लेकिन अब तक उन्होंने ऐसा कुछ नहीं किया है. अब उसी की तैयारी करनी होगी. सूदेव और महेश ने आपस में परामर्श कर के रातों-रात सूदेव के न चलनेवाले दूकान का सामान वहाँ से गोदाम घर में रखवा दिया क्योंकि नीचे उस हिस्से का कमरा काफी बड़ा है और रास्ते के पास भी. उसके बाद दोनों मिलकर तीसरे तल्ले से राधा कृष्ण की मूर्ति और सिंहासन नीचे ले आये और उसकी स्थापना की. बगल ही में महादेव बाबू के बिराजने के लिए एक बेदी का प्रबंध का लिया. महेश दो लोगों को पकड़ लाया जो कीर्तन मंडली में गाते बजाते थे.अब उन्हें यहाँ कीर्तन करना था.
सूदेव रोज़ लगभग खींच कर ही महादेव बाबू को नीचे ला कर बेदी पर बैठाता था और फिर शुरू होता हरिनाम कीर्तन. सूदेव और महेश जोर-शोर से महादेव बाबू के महात्मा होने के प्रचार में लग गये.बहुत कम समय में ही प्रचार का फल दिखने लगा. दो चार की संख्या में लोग दो वक़्त ही आने लगे दर्शन और भक्त समागम के लिए. माथे पर सफ़ेद चन्दन लगा, हाथ जोड़ कर कीर्तन गाते-गाते वो लोग भी तन्मय हो कर ‘राधे कृष्ण राधे कृष्ण’ का जयकारा करने लगे. घर लौटते हुए महादेव बाबू को प्रणाम कर सामने रखी आरती की थाली में 10-20 रुपये प्रणामी ज़रूर रख जाते.
सूदेव रात में सोने जाने से पहले रुपये गिन कर उठा लेता और दस रुपये थाली में ज़रूर छोड़ देता दुसरे दिन के लिए. महेश को भी वो निराश नहीं करता था कम ही सही लेकिन कमाई का कुछ हिस्सा उसे भी ज़रूर देता. महेश को इसमें कोई आपत्ति नहीं थी जो मिलता उसे ही आनन्द से प्रसाद स्वरुप ग्रहण करता. इतना वो भी समझ चुका था कि कमाई और बढ़ेगी लेकिन सब कुछ प्रचार पर निर्भर है. महेश और अधिक उत्साह से प्रचार कार्य में जुट गया.
कुछ ही दिनों में महादेव बाबू फिर नए परिवर्तन, नई अनुभूतियों से गुजरने लगे. दिन हो या रात जब भी वो अपने बिस्तर में लेटते उन्हें छत पर किसी के चलने की आहट सुनाई देती. साफ़ सुनाई देता है कि कोई धम्म-धम्म की आवाज़ कर के चल रहा है. घर का कोई इतनी रात गए छत पर है कि नहीं ये देखने भी कई बार आधी रात को ही उठ का छत पर देख चुके है लेकिन कोई दिखाई नहीं देता. रात जितनी गहराती और जितनी निस्तब्द्धता छाती आवाज़ उतनी ही साफ़ सुनाई देती. एक अजीब सी रोमांचकारी अनुभूति है. महादेव बाबू के सर्वांग में सिहरन होने लगती.
हफ्ते भर से महादेव बाबू खुद को समझाने की कोशिश करते रहे, जो कुछ भी घट रहा था उसे अपने बुद्धि विवेक से जानने के प्रयास में लगे रहे, ध्यान-जप की मात्रा और बढ़ा दी. खुद को जितना उस आवाज़ से दूर करने की चेष्टा करते उतनी ही स्पष्ट होती गयी. अंत में फिर से सूदेव को बुला कर सारी घटनाओं का खुलासा करना ही पड़ा.
सूदेव महाउत्साह के साथ निकल पड़ा महाराज़ के पास, हाँ- महेश को लेना नहीं भूलता. गुरुदेव सब सुनकर पहले की तरह ही धीर-स्थिर वाणी में बोले, ‘ महादेव सचमुच धन्य है, उसकी भक्ति और निष्ठा के आगे ईश्वर भी कठोर नही रह सके. निश्चय ही भगवान श्रीकृष्ण स्वंय तुम्हारे घर की छत पर चलते हैं और उनके पदचाप की ध्वनि उनके साधक महादेव के कानों में सुनाई पड़ती है. ये तो एक अलौकिक घटना है. महादेव सचमुच धन्य-धन्य है जो उसे स्वंय ईश्वर की पदध्वनी सुनाई पड़ती है. वो तो स्वंय उनका ही अंश या अवतार हो गया है. तुमदोनों भी उसकी संगतिलाभ से धन्य हो जा रहे हो. अगर मैं उसका गुरु नहीं होता तो स्वंय जा कर उसके दर्शनलाभ करता.’ बोल कर गुरुदेव दोनों हाथ जोड़ कर प्रणाम कर लिए.
सब सुनकर महेश का उत्साह कई गुना और बढ़ गया. गाँव पहुँचते ही एक माईक भाड़े पर ले कर महादेवबाबू के महात्मा होने के प्रचार में लग गया. माइक लगा रिक्शा अपने गाँव में घुमाने के बाद आस- पास के दो-चार गांवों में भी घुमाने लगा, साथ में महादेव के नाम की जयध्वनि भी. अब और राधाकृष्ण के मंदिर का उल्लेख न कर के सीधे ‘महादेवजी का मंदिर’ और उनके दर्शन के समय का उल्लेख करने लगा.
महेश के प्रचार का फल तुरंत ही मिलने लगा. दूसरे ही दिन से लोगों के दल के दल आने लगे महादेव जी के मंदिर के सामने, उनके दर्शन के लिए. लाइन लगा कर लोगों को महादेव अवतार के दर्शन का सौभाग्य मिल रहा था. गा बजा कर कितने ही भक्त दिन रात वहीं जमे रहने लगे. सभी एक सुर में कहते ‘जय राधाकृष्ण की, जय महादेव बाबा की’
ईश्वर की लीला समझना सामान्य व्यक्ति के बस की बात नहीं कब किस भक्त के साथ क्या अद्भुत कर दें प्रभु ये समझना सोच के बाहर है. महादेव बाबू में फिर से नई अनुभूतियां जागृत होने लगीं. उन्हें अब पायल की आवाज़ सुनाई देने लगी थी. चलते-फिरते हर समय उन्हें पायल की आवाज़ सुनाई देती. ऐसा लगता सारे घर में कोई पायल पहन कर रुनझुन आवाज़ करते हुए चल-फिर रहा है. जब वो मंदिर में जा कर बैठते है या एक जगह स्थिर हो कर रहें तो वो आवाज़ नहीं सुनाई देती. चलने-फिरने से ही वो आवाज़ स्पष्ट सुनाई देती. महादेव बाबू की दोनों आँखे भीग उठतीं.
गुरुदेव इसकी भी व्याख्या कर सूदेव से बोले, ‘इतने दिन सिर्फ श्री कृष्ण ही अपनी पद्ध्वनी सुनाते थे अब तो श्री राधा भी साथ में आई हैं. रासलीला शुरू हुई है अवतार के देह में. क्या परम सौभाग्य है, महादेव को साक्षात् ईश्वर के दर्शन हो रहे हैं.
महेश के मेहनत की वजह से महादेव बाबू की नयी अनुभूति और कारण भी सारे गाँव में फ़ैल गयी. सिर्फ गाँव ही क्यों अब तो शहर से भी लोग आने लगे हैं दर्शन के लिए. अब महेश अकेले भीड़ संभाल नही पाता इसलिए गाँव के तीन-चार लड़कों को भी रख लिया है स्वेच्छा सेवक के रूप में. उसे देर रात तक रुकना पड़ता है मंदिर की सफाई और अंत में प्रणामी से भाग लेने के लिए. यूँ ही तो नहीं कहा जाता साधू संगति अंत में लाभ ही कराती है. सिर्फ रुपये ही नहीं अब उसे फल-मिठाई इन सब चीजों में भी बड़ा हिस्सा मिलता है. 'जय श्री राधा कृष्ण', 'जय श्री महादेव बाबाजी' का जयकारा करते हुए महेश प्रसन्न मन से रोज़ घर लौटता है.
सारी रात हरिनाम कीर्तन और जगराता हुआ. मंदिर के सामनेवाले रास्ते को घेर कर तम्बू गाड़ भक्तों के बैठने की व्यवस्था की गयी. इस बार विशाल भक्त समागम था. दूर-दूर तक सर-ही-सर नज़र आ रहे थे. वहां गैसबत्ती जला कर पापड़, जलेबी, समोसे आदि बिक्री होने लगे. साथ ही चूड़ियाँ, रंग-बिरंगी बिंदी, फीता वगैरह बेचने वालों ने भी अपनी दुकान सजा ली थी. रात भर कीर्तन गान के साथ बिक्री-बट्टा भी अच्छा ही हुआ. देख कर लग रहा था मानो छोटा सा मेला ही लग गया हो.
मंदिर के बीचोंबीच महादेव बाबाजी का आसन सजाया गया. उन्हें वहाँ बैठा कर दूर-दूर से आये किर्तनिया मंडलियों ने उनके चारों ओर घूम-घूम कर खूब गीत गाये. कीर्तन अद्भुत चरम पर था बीच-बीच में भक्त मंडली भी हरे कृष्ण हरे कृष्ण का नारा देती रही. सारी रात जमजमाहट रही. इसी बीच महेश ने घोषणा की अबसे हर वर्ष होली और जन्माष्टमी के दिन भी इसी तरह रात भर भक्तगण कीर्तन आनंद करेंगे. भोर होते ही सभी भक्त महादेव बाबाजी को प्रणाम करते और सामने रखी थाली में दक्षिणा चढ़ा कर अपने घर की ओर चल पड़े.
दुसरे दिन सुबह से ही महादेव बाबू की तकलीफ बढ़ने लगी, माथे के बीचोंबीच असहनीय दर्द शुरू हो गया. दर्द धीरे-धीरे बढ़ता ही जा रहा था और महादेव बाबू की आँखे दर्द और पानी से धुंधली होने लगी थीं.
महादेव बाबू की पत्नी ने उनकी तकलीफ की खबर सुन कर पहले तो इस पर खास ध्यान नहीं दिया, लेकिन फिर एक अनजाने डर के कारण ही अपने दोनों बेटों को इसकी खबर दी. सुनकर बड़ा बेटा भूदेव बोला, सारी रात जग कर कीर्तन सुनने के कारण ही ऐसा हुआ होगा, उम्र तो कम नहीं हुई बाबा की. इस उम्र में इतना सब कुछ सहना मुश्किल ही तो है.’
सूदेव ने इस बात को मानने से इंकार कर दिया. उसने कहा, ‘ ऐसा कुछ भी नहीं है, ये ज़रूर ईश्वर की कोई नई लीला है. सर के ऊपर ज़रूर राधा कृष्ण ने पाँव रखा होगा, इसीलिए सर भारी लग रहा है. वैसी कोई ज़रूरत हुई तो शाम को गुरुदेव के पास जा कर इसका कारण भी जान कर आऊंगा.’ लेकिन महादेव बाबू का दर्द काबू ही नही हो रहा था.आँखों से पानी झर-झर गिर रहा था. असहनीय होते दर्द से कातर हो कर बेटे से बोले- 'बेटा मुझसे अब ये दर्द और बर्दाश्त नही हो रहा, मुझे किसी डॉक्टर के पास ले चलो.’
भूदेव सरल-सीधा है लेकिन मामला समझते उसे देर नहीं लगी, उसने तुरंत सूदेव से कहा, ‘बाबा को कभी इस तरह दर्द से कातर होते नहीं देखा, ज़रूर मामला गंभीर है चलो तुरंत डॉक्टर के पास ले चलते हैं, और देर करना ठीक नहीं होगा.’
घरवालों के जोर देने पर बाध्य हो कर सूदेव बाबा को अस्पताल ले जाने को राज़ी हो गया. रात भर कीर्तन में जागरण करने के कारण सारा गाँव सो रहा था किसी को भी पता नहीं चला कि महादेव बाबू को सर दर्द के इलाज के लिए अस्पताल ले जाया गया है.
अस्पताल के दो-तीन डॉक्टरों ने महादेव बाबू का परीक्षण करने के बाद उन्हें इ.एन.टी डिपार्टमेंट में रेफर कर दिया. इ.एन.टी डॉक्टर ने उनके दोनों कानों का निरिक्षण किया. देख कर अवाक ही रह गये. डॉक्टर के चकित दृष्टि को देख सूदेव ने जल्दी से पूछ लिया, ‘क्या बात है डॉक्टर बाबू, बाबा को कोई चिंताजनक बीमारी तो नहीं?’ डॉक्टर बोले, ‘थोडा इंतजार कीजिये अभी जान जायेंगे आपके पिता को क्या हुआ है.’ डॉक्टर अपने तरह-तरह के यंत्रों का प्रयोग कर महादेव बाबू के कान से मैल का ढेर निकालने लगे. काम पूरा कर के डॉक्टर बोला, ‘बाप रे! ज़िंदगी में कभी किसी के कान में इतना मैल नहीं देखा. इतने सालों तक इसे ले कर आप सुनते कैसे थे. कभी दिक्कत नही हुई आपको?’
डॉक्टर ने कुछ दवाएं लिख दी और उनसे कहा, ‘घंटे भर में सर दर्द कम हो जायेगा और दया कर के बीच बीच में कान साफ कर लिया कीजियेगा.’
महादेव बाबू का सर दर्द ही कम नहीं हुआ बल्कि अब कोई उनके पास फुसफुसा कर भी बात करता तो उन्हें साफ़ सुनाई पड़ने लगा था. लेकिन दुःख की बात यही थी कि अब उन्हें पहले जैसी अलौकिक अनुभूतियाँ होनी बंद हो गयी. पर सूदेव ने सब संभाल लिया. गाँव में किसी को कुछ भी पता नहीं चलने दिया. दिन जैसे चल रहे थे वैसे ही चलने लगे.
महादेव बाबू के कान की समस्या दूर होते ही उनकी सारी परेशानी जैसे दूर हो गयी. मन मिजाज़ भी पहले से हल्का रहने लगा, एक स्फूर्ति महसूस होती. लेकिन अपने इस आनंद अनुभूति को किसी के साथ भी बांटने से मना किया था सूदेव ने. उसकी सख्त हिदायत थी कि किसी को कुछ पता नहीं चलना चाहिए. न बता पाने के कारण उन्हें मन-ही-मन दुःख हो रहा था.
कई बार सरल सत्यवादी महादेव बाबू अपने कुछ अति घनिष्ठ मित्रों को जब भी बताने गये, ‘ पता है मेरे कान से..... ‘ की तभी सदा सतर्क रहने वाला सूदेव तुरंत बाबा की बात काट कर सावधानी से दूसरी बातों पर ले आता. महादेव बाबू के मन-की-बात मन ही में रह जाती.
महीना पूरा होते-न-होते सरल निश्चल महादेव बाबू अपने सुन पाने की बात किसी को बताने से पहले ही निरंतर कानों के पास कीर्तन और उसके साथ बजने वाले ढोल आदि की आवाज़ से हमेशा के लिए बहरे हो गये...
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ReplyDeleteबंगाल की खुशबू में रची-बसी एक उम्दा कहानी से रूबरू करवाने का धन्यवाद।
ReplyDeleteबहुत शुक्रिया!
ReplyDeleteछोटी सी कोशिश है ...
बहुत शुक्रिया!
ReplyDeleteछोटी सी कोशिश है ...
महादेव बाबू की लीला। समाज मे व्यायाप्त कुरूतियों का बखान। अच्छा प्रयस।
ReplyDeleteआभार!!
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