Sunday 26 June 2016

कहानी : रसायन



चित्र गूगल से प्राप्त

कई दिनों से के मीठी सी गंध नाक से नहीं जा रही. बिलकुल नहीं समझ आ रहा की आखिर ये गंध कहाँ से आ रही है? मेरी आँखों से, कान से या नाभि से या की शरीर के उन अंगों से जिनके आकर्षण में दुनियाँ बंधी है. मेरा किसी काम में मन नहीं लग रहा, खाने को दिल नहीं कर रहा, किसी से बात करने को भी नही और यहाँ तक की पढाई करने को भी मन नहीं कर रहा.
एक वैक्यूम सा बन गया है मेरे चारो तरफ. जैसे की एक पानी भरा बैलून जिसके पार कोई आवाज़ मुझ तक नहीं पहुँच रही पिछले तीन दिनों से.
हाँ! करीब तीन दिन हो गये मैंने कुछ नहीं खाया है, सारे दिन इस खोपड़ी के भीतर कुछ खलबली सी हो रही महसूस होता है. एक मृत शरीर की तरह दोनों बांहे फैला कर पलंग के बीच में पड़ी हुई हूँ.
शरीर विज्ञान और गणित के जाल में उलझ कर महसूस हो रहा शरीर विज्ञान मेरे गणित पर हावी हो रहा है.
चित्र गूगल से प्राप्त 

गणित हमेशा से मेरा प्रिय विषय था.. न विषय नही प्रिय खेल था. गणित मेरे प्राण थे, इसके सिवा दुसरे किसी चीज़ में मेरा मन कभी नहीं लगा. कहानी, नाटक, कविता मुझे हमेशा ही वाहियात लगे. समझ नहीं आता था की लोग इतना सुर लगा-लगा कर गाते क्यों है? लेकिन माँ कहाँ समझती थी इन बातों को ज़बरदस्ती हर विधा में पारंगत करने का भूत सवार था उन पर , जबरदस्ती मुझे गाना सीखने भेज दिया करती. हर चीज़ सीखने या जानने की इतनी ज़रूरत भी क्यों है ये भी मेरी समझ में कभी नहीं आया. इन सबके बीच मुझे चाचू की बात सबसे अच्छी लगती थी, वो अक्सर कहते ‘गणित के अलावा कुछ भी करना मतलब वेस्ट ऑफ़ टाइम.’ सुन कर मैं खुश होती, मन में कहीं ये वाक्य घर कर गया था. चाचू गणित के सवाल मुझसे कराते थे इसलिए वो मुझे माँ पापा से भी ज्यादा प्यारे थे.

मेरे चाचू स्कूल में मैथ्स टीचर थे. बचपन से ही वो मुझे खेलते,खाते,घूमते हमेशा ही जबानी गणित कराते. पिता पुत्र के उम्र का अंतर निकालना, क्रय विक्रय,सूद ये सब हमदोनो खेल-खेल में ज़ुबानी हल कर लेते थे. मेरी तरह इतनी तेज़ी से अंकों के खेल का जुबानी हल निकालने में कोई और जोड़ीदार नहीं था. उन्होंने ही मुझे अपने आस-पास की चीजों के ज्यामितिक विन्यास को पहचानना सिखाया था. लेकिन एक दिन अचानक ही स्कूल से लौटते हुए एक ट्रक के धक्के से वो सड़क पर लहूलुहान हो कर गिर पड़े. मैं रोते-रोते पापा का हाथ पकड़ उन्हें देखने गयी थी उनके सर के पास खून से बना वो वृत्त मैं अभी तक नहीं भूली. इतने हिसाब मिलाने के बावजूद चाचू गति के गणित को ठीक मिला नहीं पाए. मैंने उनके कान में रोते हुए कहा था, आप ये गणित नहीं मिला पाए लेकिन मैं ज़रूर मिलाऊँगी, देखना! एक दिन गति के गणित को पकड़ कर उससे टाइम मशीन बनाउंगी और आपको वापस ला कर रहूंगी.

मेरे चाचू मेरे गणित के अंको में ही रह गये. जब भी मैं गणित ले कर बैठती मुझे उन अंकों में वो ही नजर आते. मेरी सहेलियां जब प्रेमपत्र लिखती और अगल बगल के लड़कों की बातें करती मुझे अच्छा नहीं लगता था. उस समय मुझे कुछ हुआ और माँ ने मुझे बताया की ऐसा हर लड़की को होता है लेकिन अब किसी भी लड़के से ज्यादा मिलना जुलना नहीं. माँ की बात सुनकर मेरा मन खीज उठता बहुत गुस्सा आता माँ पर... खामखाह मैं क्यों किसी लड़के से ज्यादा मिलने जुलने जाउंगी!
चित्र गूगल से प्राप्त 

लेकिन वही हुआ, और उसका कारण भी गणित ही था. मुझे हर वो व्यक्ति अच्छा लगता जिसे  गणित आता हो. उसकी हर बात हर आचरण यहाँ तक की उबासी लेना भी अच्छा लगता, वो व्यक्ति मेरे लिए ईश्वर हो जाता था.
क्लास की पढाई मेरे लिए कोई मुश्किल चीज़ नहीं थी. मैंने सेलेबस को आधार मान कर पढाई करने में कभी विश्वास ही नही किया. गणित के नये नये सवाल हल करना ही मुझे अधिक पसंद था. क्लास में हमेशा मुझे ९९ अंक मिला उससे एक अंक भी कम कभी नहीं. एक नंबर कम मुझे इसलिए मिलते थे क्योंकि मैं जानबूझ कर एक अंक के सवाल को बिना हल किये छोड़ दिया करती थी. क्योंकि चाचू मुझे सिखाये थे इस पृथ्वी में शत प्रतिशत भाग कभी मिलाया नहीं जा सकता. दुनियां में आज तक कोई नहीं मिला पाया है. गणित में सौ में सौ नम्बर गलत है.
माँ-पापा मुझे और, और ज्यादा जीनियस बनाने की कोशिश में गणित पढ़ाने के लिए घर में एक ट्यूटर रख दिए. मुझसे रोज़ नाना प्रकार के गणित हल करवाते पियूष सर. सचमुच बहुत अच्छा गणित जानते थे वो, कितना भी कठिन सवाल क्यों न हो ऐसे हल करते जैसे चुटकी बजाते हों. मुझे भी खूब मज़ा आता था. सवाल हल करने का मज़ा गुणात्मक पद्धति से बढ़ रही थी. हमारे बीच एक इंटरेस्टिंग खेल शुरू हुआ, कौन किसे कठिन से कठिन सवाल दे कर हराएगा. सर कितनी कोशिश के बाद भी मुझे हरा नहीं पाते थे. और मेरी बुद्धिमता देख उनकी आँखे चमक उठती थी. मेरे दोनों हाथों को पकड़ एक दिन उन्होंने कहा था, ‘ना! कुछ तो जादू है तुम्हारे इन हाथों में. उसके बाद मेरी सारी उँगलियों को कट कट की आवाज़ के साथ बजा कर बोलते , ‘देखों कैसे सारी उँगलियाँ बज गयी, खूब दिमाग है खोपड़ी में!’ उसके बाद से गणित बनाते बनाते मेरे हाथों से खेलना उनकी आदत सी हो गयी थी.

धीरे धीरे उनकी हिम्मत बढ़ने लगी थी, अब उनके हाथ मेरे हाथों के अतिरिक्त इधर उधर भी बढ़ने लगे थे. मुझे बहुत बुरा नहीं लगता था, बताया न.... मैं उनके गणित जानने के कारण मुग्ध थी. क्रमश: गणित हल करने में अब उनका मन नहीं रहा था, कमरे में घुसते ही कॉपी खोलने से पहले ही उसके हाथों की छटपटाहट शुरू हो जाती थी. कितने, कितने सारे मज़ेदार सवालों के उत्तर मैं बना कर रखती लेकिन उस तरफ देखने के लिए उसके पास समय ही नहीं था, बल्कि मेरी आँखे कितनी सुंदर है, मेरे बाल कैसे है, मेरी हंसी कैसी है ये सब बाते मेरे कानों में भिनभिनाहट की तरह आती रहती. मुझे अब उससे चिढ होने लगी थी. एक दिन जब उसके हाथ मेरे फ्रॉक के बटन पर गए तो उसके हाथ पर मैंने काट लिया था. और जोर से माँ को आवाज़ लगायी, ‘माँ... माँ इधर आना.’ वो मेरे सामने हाथ जोड़ कर अनुनय-विनय करने लगा की मैं माँ से कुछ न कहूँ, लेकिन मैंने उसकी तरफ रत्ती भर भी ध्यान नहीं दिया. माँ कमरे में आई तो मैंने कहा, ‘माँ सर मुझे परेशान कर रहे हैं अब मैं उनके पास पढाई नहीं करुँगी.’ वो कुछ नहीं बोले उसी समय चुपचाप सर नीचा कर के घर से निकल कर चले गए. पियूष सर बहुत अच्छा गणित सिखाते थे, पर अब कभी उनसे सीखना नहीं हो सकेगा.
चित्र गूगल से प्राप्त


स्वाभाविक था ओनर्स क्लास में मैं ही सबसे तेज़ छात्रा थी. लेकिन मैट्रिक और बारहवीं के कुल अंक और प्रतिशत में बहुतों से बहुत पीछे थी क्योंकि गणित छोड़ कर बाकी सारे विषयों में मेरा मन ही नहीं था सब में अंक कम आये थे. साहित्य में तो एक एकदम डब्बा. मुझसे ज्यादा अंक पाए लड़के लड़कियां मुझे दया की दृष्टि से ही देखते थे,लेकिन ज्यादा दिन नहीं लगा इस करुणा  भरी दृष्टि को सम्मान में बदलते. बदलने को बाध्य कर दिया था मैंने, बहुत जल्द ही क्लास के बहुत से सहपाठी मुझसे गणित के सवाल समझने में मदद लेने लगे थे. क्लास का सबसे ढक्कन लड़का था उदय. सब जानते थे इस किसी भी तरह उदय के पास होने के कोई चांस नहीं, उसने मुझसे मदद मांगी मैंने भी उसे पास करने को चुनौती की तरह लिया.

सुबह शाम उससे गणित के सवाल हल करवाती, मेरा टारगेट ही हो गया था क्लास के दूसरों लड़कों से उसे ज्यादा नम्बर लाना है. बहुत तेज़ी से उसने भी प्रोग्रेस दिखाना शुरू किया. कई लोग आश्चर्य में थे बहुतों से बहुत ज्यादा नम्बर ले कर ओनर्स पास किया था उदय और मैं हमेशा की तरह फर्स्ट क्लास फर्स्ट. अपने रिजल्ट से जितनी ख़ुशी नही थी उससे कहीं ज्यादा उदय के रिजल्ट से खुश थी.

एक दिन आ कर उसने बताया आगे की पढाई के लिए वो अब एडमिशन नहीं लेगा, मैं चौंक उठी थी , ‘ क्यों क्या हुआ, हमने तो कितने प्लानिंग किये थे एक साथ एम एस सी करेंगे फिर देश के सबसे बड़े प्रतिष्ठान में अनुसन्धान करेंगे!’ वो कंधे उचका कर बोला, ‘तो करो न तुम्हे कौन रोक रहा है. मुद्दे की बात ये है की मैं और तुम्हारे बिना नहीं रह सकता, तुम्हे सबसे बचा कर रखने के ज़िम्मेदारी भी तो लेनी है.’
मैं उसकी बातों का सर पैर कुछ भी नहीं समझ पा रही थी, इसलिए अवाक् उसकी ओर तकती रही.
वो बोला बैंकिंग परीक्षाओं में बैठूँगा, तुम इतने दिनों में जिस तरह मैथ्स का फंडा समझाया है और स्ट्रोंग कर दिया है मैं ज़रूर पास हो जाऊंगा. नौकरी पक्की हो जाएगी उसके बाद हम शादी कर लेंगे फिर तुम जहाँ चाहो वहां पढना मैं उसी जगह अपनी पोस्टिंग ले लूँगा. मेरा टारगेट फुलफिल. एक नौकरी मिले यही तो चाहिए ज्यादा पढना-लिखाई अब मुझे अच्छा बोर लगता है.

अंदर ही अंदर कसमसा कर रह गयी थी मैं, गणित से प्यार न कर के उदय ने मुझसे प्यार कर लिया. उसके प्रति अब मन में कोई उत्साह नहीं रहा और एक दिन निर्दयी बन कर उसके मुंह पर दरवाज़ा बंद कर दिया.

एम एस सी खत्म कर मैंने एक इतिहास के अध्यापक से शादी कर ली, विषय अलग थे इसलिए कभी हमारे बीच मेधा को ले कर तनातनी की नौबत नहीं आएगी इस बात के लिए मैं निश्चिन्त हो गयी थी. महत्वकांक्षी नहीं थे मेरे पति. उन्हें बस रोज़गार करना और थोडा थोडा कर के धन जमा करना था अपने भविष्य के लिए. हमारे शादी की शर्त ही यही थी कि मैं शादी कर के उसी वर्ष तीन साल के लिए अनुसन्धान कार्य के लिए चली जाउंगी प्रवास पर और इसी बीच वो अपने भाई की नौकरी बहन की शादी जैसे घरलू दायित्वों का पालन कर लेंगे.

मैं चली आई अनुसन्धान के लिए यहाँ मुझे कमरा शेयर कर के रहना था एक दक्षिण भारतीय लड़की सी. मालती के साथ. वो बायोलॉजिकल साइंस की छात्रा थी. रेशम कीड़े पर उसका अनुसन्धान था. मादा रेशम किट के शरीर के मध्य भाग के निचले हिस्से में एक बिंदु जितना छोटा अंश है जिसमे से एक रसायन निकलता है उसके तीव्र गंध से आकर्षित होते हैं नर किट. इसे फेरोमन कहते हैं. इसी तरह का कोई रसायन क्या मानव शरीर से भी निकलता है जिससे विपरीत लिंगी आकर्षित होते हैं, अनुसन्धान के निष्कर्ष तक पहुचने में मालती खुद भी तार तार हुई जा रही थी.पुरे विश्व में कई जगह इस विषय पर अनुसन्धान हो रहे हैं.

उसके साथ मेरी अच्छी दोस्ती हो गयी थी, सुंदर चंचल लड़की थी मालती. रोज़ के जींस टीशर्ट बदल कर जब वो रंग बिरंगी साड़ी और मैचिंग गहने पहन कर निकलती तो लगता था जैसे तितली उड़ी जा रही है. काफी रात गये लौटती थी, पूछने पर हंस कर कहती रेशम कीड़े पर काम करती हूँ न इसलिए कभी कभी अपने खोल उतार कर पंख फैला कर उड़ने की भी इच्छा होती है.

मेरा काम तो जैसे आगे बढ़ ही नहीं रहा था, हर दिन कोई न होर बहाना कर के मरे गाइड मुझे लौटा देते. मैं किसी भी तरीके से अपनी बात उनके सामने नहीं रख पा रही थी वो मेरी सुनते ही नहीं थे. लड़ाई करते करते धीरे  धीरे थकने लगी थी. मेरे पति भी अब अधीर हो उठे थे मेरे लौटने की बात पर, एक अवसाद मुझे घेरने लगा था. धीरे धीरे शंकित होने लगी थी की शायद पी एच डी कभी पूरी नहीं हो पायेगी. मेरे बाद शुरू कर के भी मालती की थीसिस जमा हो गयी थी. अच्छे जर्नल्स और अख़बारों में भी उसके आर्टिकल छपने लगे थे फर्स्ट या सेकंड ऑथर के नाम से. ये हमारे जैसे अनुसंधानकर्ताओं के लिए स्वप्न है क्योंकि बरसों तक सा और उनके अनुगामी शिष्यों के नाम के नीचे ही मेरी तरह के छोटे अनसंधानकर्ताओं के नाम झूलते रहते है जिस पर किसी की नज़र भी नहीं जाती. हर जगह ये बात उठ रही थी की इस बार भारत सरकार नये अनुसन्धानकर्ता का पुरस्कार मालती को ही देने जा रही है.
मेरी थीसिस पेपर इस बार भी वापस आ गये. मेरे सर बोले ‘चिंता मत करो, थोड़े करेक्शन के साथ फिर से ये पेपर्स भेजे जायेंगे. मैं सब व्यवस्था कर दूँगा. अरे मेरे ऊपर भरोसा रखो, बोल कर मेरी पीठ के खुले भाग पर उन्होंने हाथ रखा.’


घुटनों में मुंह छुपा कर कमरे में अँधेरा कर के मैं बैठी थी, मालती अन्दर आयी. मुझे देख कर बोली, ‘इस तरह मुंह छुपा कर बैठे रहने से कभी थीसिस पूरा नहीं होगा. ऊपर चड़ना है तो सीधी चढ़नी ही पड़ेगी, सिर्फ लड़कियों को ही नहीं लड़कों को भी कई परेशानियों से गुज़ारना पड़ता है. ताकत के आगे झुकना ही पड़ता है. वो तुम्हे प्रयोग करे इसके पहले तुम अपनी क्षमता का प्रयोग कर लो. छिपकली से ले कर बाघ तक सभी कैसे अपने शिकार पर झपट पड़ते हैं देखी हो न..... ईगो, स्वाभिमान इन सबको ताक पर रखना होगा अभी.

मालती की बार सुनकर कई दिनों तक खुद को समझाती रही, कोई एक रास्ता मुझे अब चुन ही लेना होगा! सर के कहने पर उस दिन मैं राज़ी हो गयी एक सेमीनार में जाने के लिए.कुछ घंटों की ही बात थी, शाम तक लौट ही आना था.
सेमिनार के बाद सर शाम को गाड़ी से पहुंचा देने के लिए साथ ही आये थे. कार की सामनेवाली सिट पर ड्राईवर और उसका एक सहयोगी बैठा था. उन दोनो को अनदेखा कर अचानक सर झपट कर मुझे पकड़ लिए और उनका चेहरा मेरे चेहरे पर था. शराब की एक तेज़ गंध मेरे नाक से होते हुए सर में चढ़ गयी. मैंने दोनों हाथ से ठेल कर उनके भरी शरीर को खुद पर से हटाया. और ड्राईवर को कहा यही गाड़ी रोको मैं खुद चली जाउंगी. पता नहीं कैसे ड्राईवर ने मेरी बात मान ली और रुक गया. मैं नीचे उतर कर शाम के धुंधलके में पैदल घसीटती हुई खुद को हॉस्टल तक पहुँच गयी.
मालती कमरा छोड़ कर जा चुकी है कुछ दिनों में वो और भी दूर चली जाएगी. आज वो होती तो अच्छा होता. उसकी बकबक से कमरा भर उठता था. आज एक सन्नाटा छाया हुआ है, ये सन्नाटा जैसे मुझे खाने को आ रहा है. एक तेज़ गंध मानों मुझे पागल किये दे रही है.
मुझे उलटी महसूस हो रही है, हाँ! यही गंध, यही गंध ही शायद फोरामन है. ना! सर के मुंह से नहीं आ रही थी. ये गंध मेरे शरीर से आ रही है. यही गंध शायद सम्मोहन का काम कर रही है हर पुरुष पर. और उसी तेज़ गंध के कारण दब जा रहे है मेरे गणित के प्राण.
मालती को एक चिट्ठी लिखना है. ‘मालती मेरी पी एच डी पूरी नहीं हो पाई.सपना अधुरा ही रह गया. तुम और सफल हो बहुत नाम कमाओ. एक ऐसा कृत्रिम फोरामन विकसित करना जिसके गंध में विष हो. मेरे तुम्हारे हम सबके लिए.’  

समाप्त


  

3 comments:

  1. वाकई जीवन में शत-प्रतिशत भाग कभी मिलाया नहीं जा सकता के साथ इसके कई पक्षों को बखूबी उभारा है आपने।

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