इस दुनिया में देखा अनदेखा इतना कुछ है कि कभी कभी हम संशय में पड़ जाते हैं किस पर यकीन करें और किसे मात्र संयोग समझ कर आगे उस पर और विचार या शोध न करें। चिकित्सा पद्धतियां भी इन्ही विश्वास अविश्वास के बीच अपनी राह बनाती आगे बढ़ रही जिससे मानव जाति लाभान्वित हो रही तो साइड इफेक्ट्स के झटके भी खा रही है। एलोपैथी, होम्योपैथी, आयुर्वेद,यूनानी और भी कितनी ही पद्धतियां है जिसके सहारे इंसान रोगमुक्त होने की कोशिश में लगा रहता है …….. एक पद्धति और भी है जो प्रचलित नहीं है क्योंकि इसे वनों में रहनेवाले जनजाति समूहों ने विकसित किया और अपने तक ही सिमित रखा। आज समय बदला और जनजातीय समूहों का अस्तित्व ही खतरे में पड़ गया साथ ही उनकी संस्कृति, परम्परा, चिकित्सा पद्धति भी।
हम कथित सभ्य समाज के लोग इन चिकत्सा पद्धति का मज़ाक उड़ाते है जंगली विद्या भी कहते हैं लेकिन कुछ बीमारी और जख्मों पर ये इलाज रामबाण जैसा काम करता है। दो ऐसे उदाहरण मेरी आँखों देखी है।।
उम्र लगभग 14-15 होगी जब थेदुअस टोप्पो गाँव में खेलते हुए पेड़ से गिर पड़ा था। ऊपर से चोट ज़्यादा नहीं थोड़ा बहुत छिल गया था लेकिन कमर सीधी नहीं हो रही थी और बाँया हाथ भी भयानक पीड़ा थी शायद टूट ही गया होगा। दर्द से बेहाल थेदुअस को उसके दोस्त किसी तरह उसके घर ले गए। इत्तेफाक ही था कि उसका पिता गांव प्रमुख तो था ही बहुत अच्छा वैद्य भी था। दूर दूर गाँव से लोग उसके पास इलाज के लिये आते थे।
पिता ने जंगल जा कर कुछ जड़ी बूटियां और बड़े बड़े पत्ते जमा किये उसके साथ बांस की पतली पतली छड़ी बनायी। बेटे के कमर और हाथ पर जड़ी बूटी का लेप लगा कर उसे बड़े पत्तों से ढक बांस की छड़ीयों को पूरे कमर और हाथ पर जंगली लताओं की मदद से बांध दिया। करीब महीने दो महीने यूँ बंधा रहने के बाद जब इसे खोला गया तो थेदुअस का हाथ बिलकुल ठीक हो चुका था। कमर का दर्द भी नहीं था और अब वो सीधा खड़ा भी हो सकता था लेकिन कुछ दिनों बाद पता चला की उसके कमर की चोट काफी गहरी थी जो की पूरी तरह से ठीक नहीं हो पाया था जब भी झटका लगता या बहुत भारी सामान उठाने पर उसे तीव्र दर्द शुरू हो जाता जो आराम करने पर धीरे धीरे चला जाता।
थेदुअस के पिता ने उसे सख्त चेतावनी दी थी कि कभी किसी भी प्रकार का नशा मत करना ये किया तो शरीर टूटने लगेगा और कमर दर्द बुरी हालत में आ जायेगा।
थेदुअस ने पिता की बात हमेशा याद रखी तो दर्द से भी बचा रहा लेकिन ढलती उम्र में बुरी संगत का असर ऐसा हुआ की शराब के नशे के साथ ही ड्रग्स का आदी भी हो गया। सचमुच ही उसका स्वास्थ्य तेज़ी से बिगड़ने लगा और अब हमेशा ही कमर दर्द से पीड़ित रहता है।
थेदुअस टोप्पो की उम्र आज करीब 54-55 वर्ष है, उसके पिता अब जीवित नहीं लेकिन आदिवासी पद्धति से किया उपचार का बेहतरीन उदाहरण मेरी आँखों के सामने है।
दूसरी घटना एक साल पुरानी है। पार्लर में काम करनेवाली एक आदिवासी महिला का बेटा अचानक ही मिर्गी दौरे से पीड़ित हो गया। अपने सामर्थ्य अनुसार उसने डॉक्टर दिखाया दवा भी की लेकिन परिणाम संतोषजनक नहीं मिल रहा था। तभी उसके किसी परिचित ने एक ऐसे पारम्परिक उपचार करनेवाले वैद्य की खबर दी जो दूर किसी जंगल के पास बसी बस्ती में रहता है। संगीता अपने बेटे को ले कर उसके पास गयी मात्र 4 बार जा कर दवा के डोज़ लेने के बाद अब उसका बेटा पूरी तरह स्वस्थ है अब कभी उसे दौरा नहीं पड़ा।
इस इलाज के बदले मूल्य भी अपनी इच्छानुसार देने की बात ऊस वैद्य ने कही थी। चाहे रूपये दो या खाने का कुछ सामान सब चलेगा।
ये है आदिवासियों की पारम्परिक चिकित्सा पद्धति जो कि लुप्तप्राय है क्योंकि अब न जंगल बच रहे कि जड़ी बूटियां उपलब्ध होंगी और न ही आदिवासियों को उनकी परम्परा के साथ रहने दिया जा रहा।
संस्कृति और परम्परा में बहुत सी उपयोगी चीजें भी छुपी होती है जिसे खत्म होने से बचाना चाहिए।
हम कथित सभ्य समाज के लोग इन चिकत्सा पद्धति का मज़ाक उड़ाते है जंगली विद्या भी कहते हैं लेकिन कुछ बीमारी और जख्मों पर ये इलाज रामबाण जैसा काम करता है। दो ऐसे उदाहरण मेरी आँखों देखी है।।
उम्र लगभग 14-15 होगी जब थेदुअस टोप्पो गाँव में खेलते हुए पेड़ से गिर पड़ा था। ऊपर से चोट ज़्यादा नहीं थोड़ा बहुत छिल गया था लेकिन कमर सीधी नहीं हो रही थी और बाँया हाथ भी भयानक पीड़ा थी शायद टूट ही गया होगा। दर्द से बेहाल थेदुअस को उसके दोस्त किसी तरह उसके घर ले गए। इत्तेफाक ही था कि उसका पिता गांव प्रमुख तो था ही बहुत अच्छा वैद्य भी था। दूर दूर गाँव से लोग उसके पास इलाज के लिये आते थे।
पिता ने जंगल जा कर कुछ जड़ी बूटियां और बड़े बड़े पत्ते जमा किये उसके साथ बांस की पतली पतली छड़ी बनायी। बेटे के कमर और हाथ पर जड़ी बूटी का लेप लगा कर उसे बड़े पत्तों से ढक बांस की छड़ीयों को पूरे कमर और हाथ पर जंगली लताओं की मदद से बांध दिया। करीब महीने दो महीने यूँ बंधा रहने के बाद जब इसे खोला गया तो थेदुअस का हाथ बिलकुल ठीक हो चुका था। कमर का दर्द भी नहीं था और अब वो सीधा खड़ा भी हो सकता था लेकिन कुछ दिनों बाद पता चला की उसके कमर की चोट काफी गहरी थी जो की पूरी तरह से ठीक नहीं हो पाया था जब भी झटका लगता या बहुत भारी सामान उठाने पर उसे तीव्र दर्द शुरू हो जाता जो आराम करने पर धीरे धीरे चला जाता।
थेदुअस के पिता ने उसे सख्त चेतावनी दी थी कि कभी किसी भी प्रकार का नशा मत करना ये किया तो शरीर टूटने लगेगा और कमर दर्द बुरी हालत में आ जायेगा।
थेदुअस ने पिता की बात हमेशा याद रखी तो दर्द से भी बचा रहा लेकिन ढलती उम्र में बुरी संगत का असर ऐसा हुआ की शराब के नशे के साथ ही ड्रग्स का आदी भी हो गया। सचमुच ही उसका स्वास्थ्य तेज़ी से बिगड़ने लगा और अब हमेशा ही कमर दर्द से पीड़ित रहता है।
थेदुअस टोप्पो की उम्र आज करीब 54-55 वर्ष है, उसके पिता अब जीवित नहीं लेकिन आदिवासी पद्धति से किया उपचार का बेहतरीन उदाहरण मेरी आँखों के सामने है।
दूसरी घटना एक साल पुरानी है। पार्लर में काम करनेवाली एक आदिवासी महिला का बेटा अचानक ही मिर्गी दौरे से पीड़ित हो गया। अपने सामर्थ्य अनुसार उसने डॉक्टर दिखाया दवा भी की लेकिन परिणाम संतोषजनक नहीं मिल रहा था। तभी उसके किसी परिचित ने एक ऐसे पारम्परिक उपचार करनेवाले वैद्य की खबर दी जो दूर किसी जंगल के पास बसी बस्ती में रहता है। संगीता अपने बेटे को ले कर उसके पास गयी मात्र 4 बार जा कर दवा के डोज़ लेने के बाद अब उसका बेटा पूरी तरह स्वस्थ है अब कभी उसे दौरा नहीं पड़ा।
इस इलाज के बदले मूल्य भी अपनी इच्छानुसार देने की बात ऊस वैद्य ने कही थी। चाहे रूपये दो या खाने का कुछ सामान सब चलेगा।
ये है आदिवासियों की पारम्परिक चिकित्सा पद्धति जो कि लुप्तप्राय है क्योंकि अब न जंगल बच रहे कि जड़ी बूटियां उपलब्ध होंगी और न ही आदिवासियों को उनकी परम्परा के साथ रहने दिया जा रहा।
संस्कृति और परम्परा में बहुत सी उपयोगी चीजें भी छुपी होती है जिसे खत्म होने से बचाना चाहिए।
महत्वपूर्ण विषय पर ध्यानाकर्षित किया है आपने। जनजातियों की पारंपरिक पद्धतियों पर सार्थक शोध और संरक्षण की जरूरत है।
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