Monday 27 March 2017

बिन ब्याही माँ की डायरी



नए दौर की नई कहानी, नई तकनीक पर अब नए प्रयोग होने लगे हैं। कभी शादीशुदा जोड़े ही छुप-छुपा कर सेरोगेसी के ज़रिये संतान हासिल कर रहे थे अब हमारे बॉलीवुड के अभिनेताओं ने एकदम ताज़ा उदाहरण पेश करना शुरू कर दिया है। बिना शादी ब्याह के झमेले में पड़े सेरोगेसी तकनीक से पिता बन जाओ। देश की ऐसी छुट-पुट खबरें पढ़ती हूँ तो 7 साल पहले के अपने देश भारत में बिताये दिन याद आते हैं। मेरी डायरी के पन्नों में वो सारे दिन आज भी ताज़ा हैं, लेकिन मैं सब पीछे छोड़ कर दूसरे देश निकल आई, आना ही पड़ा क्या करती! मेरे माता पिता भी मेरे निर्णय के विरुद्ध थे, आगे हम दो ज़िन्दगियों का सवाल था- यूँ ही बर्बाद नहीं कर सकती थी। चूँकि फैसला मेरा था, उसका परिणाम का भी मुझे ही करना होगा।
क्या सोचने लगे? कैसा फैसला कौन सी दो ज़िन्दगी?
सारे सवालों के जवाब मेरी डायरी में है आज कुछ पन्ने आपके लिए खोल देती हूँ।
करण जौहर की फ़िल्म कुछ-कुछ होता है की अंजलि याद है न, एकदम टॉम बॉय। खेलकूद कपड़ों की स्टाइलिंग सब कुछ लड़कों जैसा। दोस्त भी लड़के ही, हों भी क्यों नहीं अंजलि लड़कियों जैसी शर्मीली, कपड़े और ब्यूटी पर ध्यान देनेवाली लड़कियों जैसी थी ही नहीं। मैं भी बिलकुल अंजलि जैसी ही थी। एकदम बिंदास, बेफिक्र और अपनी मर्ज़ी से चलने वाली। मैं बाइक भी बहुत अच्छी चलाती थी लेकिन पापा की थी तो उन्हें बिना बताये छुपा कर चलाती थी। आपको वीनू पालीवाल याद है? वही प्रसिद्ध महिला बाइकर जिसे HOG रानी नाम दिया गया था, पिछले साल सड़क दुर्घटना में ही उसकी मौत हो गयी थी। मैं उनकी ज़बरदस्त फैन थी। सोचती हूँ वीनू को भी तो अपने बाइक प्रेम और लम्बी दूरी तक सड़क नापने की उत्कंठा ने क्या कुछ कम परेशान किया होगा? लड़की हो कर लड़कों की तरह अकेली ही बाइक पर दुनिया नापने निकल पड़ी समाज को तो बहुत खुजली मची होगी। लेकिन फिर भी वीनू पालीवाल ने अपने सपने को पूरा किया और अपने प्यारे हार्ले डेविडसन पर ही मौत को गले लगा लिया।
एक बार मैंने भी रेगिस्तान में बाइक रैली में हिस्सा लिया। वहाँ पहुंची तो देखा एक मेरे अलावा दूसरी कोई भारतीय लड़की रैली का हिस्सा नहीं थी लेकिन विदेशी लड़कियां कई सारी थीं।अनोखा अनुभव था जीवन भर याद रहेगा। वैसे मेरा तो पूरा जीवन ही एडवेंचर बन गया है।
कॉलेज खत्म कर के मैंने एक एडवरटाइजिंग एजेंसी ज्वाइन कर ली। यहां का माहौल कम-से-कम मेरे कपड़ों और पिक्सि हेअरकट आदि पर प्रश्न चिन्ह लगाने जैसा नहीं था। मुझे मेरी तरह जीने के लिए दूसरों के इज़ाज़त की ज़रूरत नहीं थी।

आज सालों बाद मुझे मेरे कॉलेज की सहेली स्मिता मिली। शादी कर के खुश है पति अभी अमेरिका में रह रहा है अगले साल लौटने पर दोनों ने परिवार बढ़ाने का सोचा है। उससे मिल कर ख़ुशी और एक नई बेचैनी के साथ मैं घर लौटी।
नींद नहीं आ रही, बार बार करवटें बदल रही हूँ और अंदर एक आवाज़ मुझे बेचैन किये जा रही है। मैं माँ बनना चाहती हूँ। हाँ, ये मेरे अंतरात्मा की आवाज़ थी।
जानती हूँ आप मेरी इच्छा पढ़ कर मन-ही-मन मुझे कोसते हुए कह रहे हैं, अगर इतनी ही इच्छा थी माँ बनने की तो किसी से शादी कर लेती या किसी गरीब अनाथ को ही घर ले आती। पूण्य भी होता और किसी बच्चे को परिवार मिल जाता।
आपको क्या लगता है, मेरे माँ-पापा ने मेरी शादी करवाने की कोशिश नहीं की? उन्होंने तो बहुत कोशिश की लेकिन किसी ने मुझे पसंद ही नहीं किया। मेरे बहुत से दोस्त है लेकिन कोई मुझे अपनी पत्नी रूप में नहीं देखना चाहता। मैं बाइक चलाती हूँ कभी भी देश की किसी भी प्रान्त में रैली के लिए निकल जाती हूँ , मर्दाने तरीके के कपड़े पहनना ही पसंद करती हूँ। शादी की पात्रता अनुसार मैं कहीं से भी खरी नहीं उतरती। पात्रता हासिल करने के लिए मुझे खुद को बदलना पड़ेगा या सही पात्र हूँ इसके लिए दिखावा करना होगा, जैसे कि अंजलि ने अपना प्यार किसी दूसरे के साथ देख अपनी जीवन शैली में बदलाव कर लिया था। मैं इसके लिए राज़ी नहीं।
वीनू पालीवाल मेरी प्रेरणा, उनका भी तलाक हो गया था सिर्फ इसलिए की उनके पति को उनका बाइक चलाना और दूर-दूर निकल जाना पसंद नहीं था। कितना कठिन है खुद को मार कर दूसरे की ज़िद और झूठे अहंकार के लिए जीते जाना।
अगर मैं बच्चा गोद लेती तो इसमें मेरा कृतित्व कहाँ रहता? नौ महीने अपने अंदर पलनेवाले शिशु का वो अनुभव कैसे मिलता! इसीलिए मैंने तय किया कि कृत्रिम गर्भधारण कर मैं माँ बनूँगी।

मेरी एक इच्छा ने मेरे आस-पास भूचाल ला दिया। माँ-बाप रोना पीटना शुरू कर दिए, दिन रात मुझे कोसते कि दुनिया में इतनी लड़कियां पैदा होती हैं, एक अच्छा और स्वाभाविक खुशहाल जीवन जीते हुए माँ बाप को कृतार्थ करती हैं; एक उनके ही भाग्य क्यों फूटे निकले जो उनकी बेटी ऐसे नियम विपरीत चलने की ज़िद पकड़े बैठी है। स्मिता ने समझाने में एड़ी चोटी का ज़ोर लगा दिया। उसने समाज का डर दिखाया….. गर्भधारण के बाद कैसे मैं सबके सामने रोज़ आना-जाना करुँगी? कैसे ऑफिस में सबकी नज़रों और सवालों का सामना करुँगी? सभी चरित्र पर ऊँगली उठाएंगे कैसे उनका मुंह बन्द होगा? ऐसे निर्णय सेलिब्रिटी लें लोग प्रश्नचिन्ह नहीं लगाते उनके जीने के कई रास्ते हैं लेकिन मध्यमवर्गीय परिवार की लड़की ऐसा कदम उठाये तो स्थिति दर्दनाक हो जायेगी। कितने ही उदाहरण खोज-खोज कर निकालने लगी सिर्फ मुझे समाज के बनाये नियम विरुद्ध कदम उठाने से रोकने के लिए।
मैंने उससे कहा, तुम क्या सोचती हो? मैंने तय नियम के अनुसार माँ बनने की कोशिश नहीं की, लेकिन हर बार रिजेक्ट कर दी गयी क्योंकि मुझे अपना आत्मसम्मान विसर्जित करना मंज़ूर नहीं था। अब मैं माँ बनने के लिए वैज्ञानिक तकनीक का सहारा ले रही हूँ तो इसमें क्या गलत है? मैं किसी को ठग नहीं रही। किसी के साथ झूठे सम्बन्ध भी नहीं बना रही। माँ बनने में अपराध कहाँ है और मैं तो माँ बन सकती हूँ और उसका पालन पोषण भी कर सकती हूँ फिर इसमें किसी को क्या परेशानी होगी? स्मिता के पास मेरे तर्क का कोई जवाब नहीं था या शायद माँ बनने की मेरी लालसा इतनी बलवती हो गयी थी कि अब कोई विरोध सुनना ही नहीं चाहती थी।
आखिर वो दिन भी आ गया जब मेरे माँ बनने की प्रक्रिया शुरू हुई। प्रयोग सफल रहा। अब मेरे जीवन की एक बड़ी इच्छा पूरी होने की प्रक्रिया शुरू हो चुकी थी। महीने गुज़रने लगे। शरीर में परिवर्तन होने लगा था मेरा पेट अब नज़र आने लगा था। लोगों की तिरछी नज़रें व्यंग्य बाण और सवालों से परेशान हो कर माँ-पापा ने घर से निकलना ही छोड़ दिया। मैं इसके लिए तैयार थी इसलिए चुभती नज़रों और व्यंग्यों से बेपरवाह अपने रास्ते चलती रही।
अपने गर्भ के छठे महीने में मैंने ऑफिस में सबको बुला कर एक छोटी सी टी पार्टी दी और खुलासा किया की न तो मेरे साथ प्रेम प्रसंग में कोई धोखा हुआ है और न ही किसी ने बलात्कार किया है और न ही छुप कर मैंने शादी कर ली है। मैंने माँ बनने की इच्छा को पूरा करने के लिए साइंटिफिक तरीके से स्पर्म इंसेमिनेशन करवाया है जिसमे किसी भी प्रकार से पुरुष शरीर के संपर्क में आने की ज़रूरत नहीं पड़ती।
उस दिन के बाद सहकर्मियों की फुसफुसाहट बन्द हो गयी, भले ही  मेरे अनुपस्थिति में बातें होती हों पर मुझे सुना कर नहीं।
दिन बीतते गए और फिर तृप्ति का जन्म हुआ। सचमुच गर्भधारण के बाद बच्चे के बढ़ने से ले कर प्रसव पीड़ा सब कुछ वैसा ही था जैसे सामान्य तरीके से माँ बनने पर होती है। फर्क सिर्फ यही था कि तृप्ति सिर्फ मेरी थी। मैं ही उसकी अकेली अभिभावक।

देखते-देखते तृप्ति प्ले स्कूल जाने लायक हो गयी। एडमिशन में खास परेशानी नहीं हुई बस पिता के नाम की जगह खाली देख कई स्कूलों ने वापस लौटा दिया। थोड़ी कोशिश के बाद एक प्ले स्कूल में एडमिशन मिल ही गया। तृप्ति की बहुत सी पसंद मेरे जैसी ही है उसे गुड़िया से ज़्यादा गाड़ी और स्पोर्ट्स में दिलचस्पी है। छोटी सी तृप्ति अब अपनी माँ और अपनी आया नीरू मासी के अलावा भी दोस्त बनाने लगी है; रोज़ नई चीजें सीखती और नए सवाल ले कर घर आती। अभी तो शुरुआत थी, तृप्ति को अभी अपनी माँ का अपने लिए चुने हुए जीवन की बहुत सी जवाबदेही पूरी करनी बाकी थी।
जब तृप्ति को बड़े स्कूल में एडमिशन करवाना था तो ये भी किसी युद्ध से कम नहीं रहा। हर जगह तृप्ति अपने टेस्ट में पास हो जाती लेकिन मैं तृप्ति की माँ इंटरव्यू के दौरान फेल कर दी जाती क्योंकि तृप्ति के पिता का परिचय नहीं था। अंत में सोर्स लगा कर ही तृप्ति का एक अच्छे स्कूल में एडमिशन हो सका।
स्कूल से आ कर तृप्ति पूछती , माँ मेरे सब दोस्तों के पापा हैं मेरे क्यों नहीं है?
ये पहला सवाल था जिसकी उम्मीद भी थी मुझे और मैं इसके लिए तैयार भी थी। मैं तृप्ति से किसी भी तरह का झूठ नहीं कहना चाहती थी लेकिन बातों को ठीक से समझ सके इसके लिए सही उम्र का इंतज़ार ज़रूरी था।
आज मैंने उसके प्रश्न का जवाब दिया,  नहीं बेटा तुम्हारे कोई पापा नहीं है सिर्फ माँ है।
मेरे दोस्त कहते हैं मेरे पापा मेरे साथ नहीं तब ज़रूर स्टार हो गए हैं।
नहीं तृप्ति तुम्हारे पापा स्टार नहीं हुए तुम अपने दोस्तों से कहना तुम अपनी माँ की इच्छा से इस दुनिया में आई हो।
ठीक है माँ मैं सबको यही बताऊँगी कि तुमने भगवान से प्रार्थना की थी तभी उन्होंने मुझे तुम्हारी बेटी बना कर भेजा।
आज का सवाल-जवाब यहीं पर खत्म हो गया।
तृप्ति खुद को दूसरे बच्चों से अलग न समझे इसलिए मैंने पता नहीं कब खुद में परिवर्तन लाना शुरू कर दिया था। अब मैं कभी-कभी सलवार कुर्ती और साड़ी पहनती थी, बाल भी कन्धे तक लम्बे कर लिए थे। अलग-अलग डिश बनाना तो तृप्ति को खुश करने के लिए मेरा सबसे पसंदीदा काम हो गया था।

आज ऑफिस से लौट कर देखा तृप्ति उदास है उसने बताया कुछ बच्चे एकसाथ मिल कर उसे उसके पिता न होने के कारण चिढ़ा रहे थे। वो कहते हैं तृप्ति और तृप्ति की माँ झूठी है, पापा स्टार भी नहीं बने साथ भी नहीं रहते तो फिर कहाँ हैं? कोई जवाब न दे पाने के कारण तृप्ति स्कूल में रोयी भी थी।
मेरा कलेजा फट रहा था छोटे बच्चे भी ग्रुप बना कर कितने निर्दयी व्यवहार करना सीख जाते हैं! मैंने तृप्ति को फिर समझाने की कोशिश की। उसे बताया तुम ट्यूब बेबी हो।
वो क्या होता है माँ?
उसके मासूम से सवाल के जवाब में स्पर्म बेबी समझाना और उसके लिए समझना दोनों ही कठिन था इस उम्र में।
मैंने कहा, थोड़ी बड़ी हो जाओ फिर मैं तुम्हे समझा दूंगी; अभी चलो तुम्हारे पसंद का कस्टर्ड बनाया है खा लो।

निष्ठुर दुनिया किसी को अपनी मर्ज़ी का जीवन शांति से जीने नहीं दे सकती उसमें दखलंदाज़ी किये बिना जीवन को प्रभवित किये बिना उसे चैन नहीं।
एक दिन तृप्ति स्कूल से लौट कर बोली माँ मिडिया प्रेस क्या होता है?
उसके सवाल ने मुझे मानो अँधेरे कुंए में धकेल दिया जहाँ तरह-तरह की आवाजें गूंज रही हैं, लेकिन कोई मेरी आवाज़ नहीं सुन रहा। मैं समझ गयी कि अब तृप्ति को एक स्वाभाविक ज़िन्दगी देने के लिए मुझे फौरन ये शहर और जितनी जल्दी हो सके इस देश को भी छोड़ कर निकलना होगा।

मीडिया के सवाल-जवाब और समाज की छींटाकशी मेरी बेटी का जीवन नर्क बना देगी। मध्यम वर्ग को तय किये रास्तों पर ही चलना होगा उसके बाहर अपनी मर्ज़ी से कदम रखने की कीमत मैं तो चुकाने के लिए तैयार थी लेकिन मेरी बेटी को भी चुकाना पड़े इसके लिए मैं तैयार नहीं।
विधवा अकेली औरत, भीख मांग कर दूसरों के सहारे जीवन गुजारती औरत इस समाज को मंज़ूर है। पति से प्रताड़ित होती औरत के आंसू समाज को मंज़ूर हैं, संतान सुख न दे सके ऐसा पति भी समाज को मंज़ूर है लेकिन कोई आत्मनिर्भर औरत अपनी मर्ज़ी से अपनी एक संतान पैदा करे इसे स्वीकार करना सीखने में अभी भी इस समाज को बहुत देर है।
मैंने जल्दी ही वो शहर छोड़ दिया और साल भर के अंदर ही नई नौकरी के साथ कनाडा शिफ्ट हो गयी। यहां तृप्ति को रोज़ ऐसे सवालों का सामना नहीं करना पड़ता तृप्ति और तृप्ति की माँ मैं, हमदोनों दुनिया के सबसे सुंदर रिश्ते माँ और संतान के रिश्ते के बेहद सुखद पलों को जी रहे हैं।
मैं अपने देश अपनी संतान के साथ लौटना चाहती हूँ। वो दिन भी ज़रूर आएगा जब तुषार कपूर, करन जौहर की तरह तृप्ति की माँ को भी समाज ख़ुशी-ख़ुशी अपनाएगा। सवालों के कठघरे में खड़ा नहीं करेगा।




9 comments:

  1. अपने समय से बहुत आगे की सोच है यह और यह सब अवश्य होगा स्वीकारा भी जायेगा लेकिन लोहपाश टूटने में समय तो लगता है रूढ़ियों का।आने वाले समय में यह सब सामान्य जीवन का अन्ग ही होगा।

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    1. हम एक स्वस्थ समाज के लिये कामना कर सकते हैं।
      आभार!

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  2. अपने समय से बहुत आगे की सोच है यह और यह सब अवश्य होगा स्वीकारा भी जायेगा लेकिन लोहपाश टूटने में समय तो लगता है रूढ़ियों का।आने वाले समय में यह सब सामान्य जीवन का अन्ग ही होगा।

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  3. बेहद खूबसूरत!

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  4. बेहद खूबसूरत!

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  5. एक सामयिक विषय के अन्य पहलु को सामने रखने का धन्यवाद

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  6. फिलहाल तो निःशब्द हूँ
    पोस्ट को जज्ब कर रहा हूँ

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