Wednesday 7 September 2016

डायरी.... किसकी? आप तय करें..



जिन्हें देख कर आपकी आँखों में, शब्दों में सहानुभूति और मन के गहरे तल
में डर और अपने इस स्थिति में न पहुँचने की प्रार्थना चलती हो क्या उनकी
डायरी पढ़ना चाहेंगे? आपकी रूचि का उसमें कुछ भी न मिले शायद गहरी
उदासीनता और अपने छोटे-छोटे कामों के लिए भी दूसरों की मदद पर निर्भर
जीवन में झाँकने जैसा कुछ भी तो नहीं लेकिन फिर भी इस शरीर में भी एक मन
है जो बिलकुल आपके ही मन के जैसा भावनाओं का आवेग उद्द्वेलित करता रहता
है।  जीवन के कुछ दिन और सामान्य लोगों जैसा बिताने के बाद एक हादसा जब
ज़िन्दगी बदल दे तब ......

मेरा नाम मंदिरा है, पेशे से डॉक्टर थी, अभी भी हूँ लेकिन अब मेरी सेवाओं
की दिशा बदल गयी है मेरा जीवन समर्पित है मेरे ही जैसे मेरे साथियों के
लिए. अब मैं उनकी सुनती हूँ और अपनी सुनाती हूँ। अब मुझे टीवी पर भी अपने
व्हील चेयर के साथ टॉक शो पर जाने में संकोच महसूस नहीं होता। मैं अपनी
रोज़मर्रा की परेशानी, उस पर काबू पाने के बेहतर तरीके और आत्मनिर्भर बनने
के कौशल पर खुल कर बात करती हूँ। जीवन यदि जटिल है तो उसे सरल बनाने के
प्रयास में लगे रहना ही मेरा मकसद है।

अच्छी भली ज़िन्दगी चल रही थी, पढाई खत्म कर के अभी कुछ ही दिन हुए
प्रैक्टिस शुरू की थी।  बहुत से सपने थे मेरे और अजित के। अजित डॉक्टर
नहीं, हम कॉमन फ्रेंड की पार्टी में दोस्त बने और जाने कब एक दूसरे के
लिए खास बन गये कुछ पता ही नहीं चला। शादी की डेट फिक्स होनी बाकी थी
लेकिन भविष्य के गर्भ में कौन सी डेट किसके साथ फिक्स है समय आने पर ही
पता चलता है। एक एक्सीडेंट और उसके बाद सारे डेट सारी प्लानिंग बदल गयी।
कल जो कुछ भी मेरा सच था आज वो सब अतीत के साथ दफन हो गया.
होश आया तो अपने ही हॉस्पिटल के एक बेड पर पड़ी थी। कमर से नीचे का हिस्सा
बेकार हो गया था, मुझे कुछ भी महसूस नहीं हो रहा था. शरीर का निचला
हिस्सा जितना सुन्न हुआ था मन उतना ही चंचल हो उठा था। जो कुछ बचा है
उसके खो जाने के डर से मैं मर रही थी, लेकिन उससे क्या होता है होना वही
था जो तय था। मुझसे बेहद प्यार करनेवाला अजित मुझे छोड़ कर चला गया।

नयी शुरुआत ऐसी थी जैसे नये जन्मे बच्चे के लिए नयी दुनिया। वार्धक्य की
चुनौती से लड़ते हुए मेरी माँ ने मुझे फिर से संभाला। मैं लाचार बेबस खुद
एक ग्लास पानी तक नहीं ले सकती थी, कब टॉयलेट जाने की ज़रूरत है ये तक
महसूस करने की क्षमता खो गयी थी। हर वक्त माँ ने छोटे बच्चे की तरह
संभाला।
माँ ने मेरी सबसे पसंदीदा चीज़ मेरी आँखों के सामने से दूर कर दी थी, मेरी
नजरें उन्हें खोजतीं लेकिन पूछ नहीं पाती थी... माँ भी समझती मैं क्या
खोज रही हूँ लेकिन वो भी अनजान बने रहने का नाटक करती। मुझे क्रेज़ था
लेटेस्ट डिजाईन के सैंडल्स का, पर अचानक ही उनकी ज़रूरत तो बिलकुल खत्म हो
गयी अब सिर्फ मैं और मेरा व्हील चेयर .......

जीवन के बदलाव को मैंने स्वीकार किया खुद को कठिन संघर्ष के लिए मजबूत कर
लिया और फिर वो दिन भी आया जब मेरा सबसे बड़ा सहारा मेरी माँ इस दुनिया से
चली गयी। माँ चली गयी लेकिन जाते -ते मुझे आत्मनिर्भर बना गयी,
‘आत्मनिर्भर’ पढ़ कर क्या सोचने लगे आप! हमारे लिए ये शब्द कितना
उपहासपूर्ण है.. है न! पर यही सच है। आज अपने घर में अकेली रहती हूँ,
अपनी गाड़ी भी खुद चलाती हूँ. आधुनिक तकनीकों ने मुझे बड़ा सहारा दिया.
मेरे सुन्न हो चुके जीवन को फिर से स्पंदन मेरे उद्देश्य से मिला।
अब मैंने अपनी सीमित हो चुकी डॉक्टरी क्षमता को ‘डिसेबल्ड ट्रेनिंग
प्रोग्राम’ से जोड़ कर असीमित कर लिया था। आज मेरे साथियों के लिए मेरा
जीवन प्रेरणा है अवसाद की शुन्यता से सुन्न हो चुके जीवन में आशा की किरण
है।
रोज ही नये साथी आते हैं।  मन की कहते हैं, मैं उनके साथ अपना दुःख भूलती
हूँ और उन्हें भुलाने में मदद करती हूँ, पर कॉन्फेशन करना चाहती हूँ
डायरी, तुम्हारे पास...... मैं कुछ नहीं भूल पायी। न वो रंगीन सपनों से
भरा जीवन और न ही अजित का मुंह फेर कर चला जाना और न ही लोगों की
सहानुभूतिपूर्ण दृष्टि जो सबसे अधिक चोट पहुंचाती हैं। दुनिया हमें दया
की दृष्टि से देखना चाहती है लेकिन हमसे प्यार नहीं कर सकती. सभी सोचते
हैं हमें प्यार से ज्यादा दया और दूसरी चीजों की ज़रूरत है। मैं रोज़ रोती
हूँ, खूब रोती हूँ लेकिन सुबह फिर से मुस्कुराते हुए अपने साथियों के पास
लौटती हूँ क्योंकि मैं प्रेरणा हूँ उनकी. प्यार के बिना कैसे जिया जाये
ये सीखना है उन्हें मुझसे।

कल पद्मा से मुलाकात हुई सड़क दुर्घटना में उसने अपना बच्चा खो दिया और
स्पाइनल कॉर्ड में चोट के कारण उसका जीवन भी व्हील चेयर पर आ गया।  घर के
लोग और पति सभी उसका ख्याल रखते थे लेकिन उसे महसूस होता कि पति पहले की
तरह उससे प्यार नहीं करता बस सहानुभूति के साथ निभाते जा रहा है। पद्मा
समझती है कि जब शरीर पहले जैसा नहीं रहा तो रिश्ता भी पहले जैसा नहीं
रहेगा लेकिन भावनाओं का क्या करे?  उसे तो रिश्ते के बदलते भाव से ही चोट
लग रही है। पद्मा माँ बनना चाहती है लेकिन किसी से ये बात कह नहीं सकती।
व्हील चेयर पर चल रही ज़िन्दगी पर दुनिया दया कर सकती है लेकिन उसे
सामान्य लोगों की तरफ कल्पना करते हँसते, गुनगुनाते और इच्छाएँ प्रकट
करते नहीं देख सकती।

व्हील चेयर पर चलती ज़िन्दगी के साथ ईगो, स्टाइल और मनमर्जियां माफ़िक नहीं लगती न!!
लेकिन जब वो मिला तो उसने मेरे बहुत सारे भ्रम तोड़ दिए। दुनिया उसे क्या
कमजोर और लाचार समझेगी वो सबकी इस आदत और इच्छा को धता बताते हुए ऐसे टशन
में रहता कि लोग उसकी स्टाइल को देखने के लिए मुड़-मुड़ कर देखते। दुबला और
अनीमिया से सफ़ेद पड़ा शरीर उसे और गोरा दिखाता था। चेहरे पर ऐसी मुस्कान
और बातों में इतना आत्मविश्वास- सुनकर लगता जैसे अभी व्हील चेयर छोड़ कर
उठ खड़ा होगा।

उसके पास हमेशा एक लैपटॉप रहता।  बात करता रहे या अपने बेड सोर की
ड्रेसिंग करवाए लैपटॉप हमेशा खुला ही रहता। नई चीज़ सीखने की ज़बरदस्त ललक
थी उसमें, झट सीख लेता था।  कानों  में बालियाँ, आँखों पर स्टालिश चश्मा
और मुंह में सिगरेट ये उसकी स्टाइल थी।  ‘ट्रेनिंग प्रोग्राम’ की ट्रेनर
मैं थी लेकिन सच तो ये है कि मैं उससे सीख रही थी अपने सारे दर्द और
संघर्षपूर्ण दिनों को कैसे दुनिया से छुपा कर खुल के हँसा जाता है, दोस्त
बनाये जाते हैं. कैसे वास्तव में जिया जाता है...
ट्रेनिंग के बाद भी कुछ देर बैठ कर वो रोज़ मेरे साथ बातें करता.... नहीं!
बल्कि उसकी रहस्यमयी बातें और आत्मविश्वास इतना आकर्षक था कि मैं ही उससे
बातें करने को रोक कर रखती। बहुत कुछ बताया उसने अपने बारे में, अपनी
इच्छाओं के बारे में भी।

अंशुमन बहुत अच्छा शूटर और कराटे में ब्लैक बेल्ट था। आपसी रंजिश में उसे
बुरी तरह मार कर मरने के लिए छोड़ दिया गया था। वो मरा तो नहीं लेकिन मौत
से बदतर ज़िन्दगी हो गयी उसकी।
एक दिन उसने बताया जानती हो मैडम, आज मैं मॉल गया था कुछ लोगों का ग्रुप
मुझे गौर से देख रहा था, वो लोग मेरे कानों की बालियों पर बातें कर रहे
थे एक ने तो हद कर दी अपनी मोबाइल से मेरी फोटो लेने की कोशिश की। मैंने
देखा और उसके पास जा कर उसका फोन ले कर फेंक दिया।  क्या हम पिंजरे में
बंद जानवर हैं जिसे देख कर कोई हँसे, कोई बुलाये तो कोई उसकी फोटो खींचे?
क्या कहती हमदोनों का दर्द तो एक सा है.... उसके शब्दों से मेरा दर्द भी
टपक रहा था।
एक दिन उसने बताया जानती हो मैडम इन्टरनेट पर रोज़ ढूंढ़ता हूँ कहीं से कोई
लिंक मिले और पता चले कि मैं अब व्हील चेयर पर नहीं बल्कि पैरों पर खड़ा
हो सकता हूँ लेकिन देखो न जिस तरह व्हील चेयर मिलने के बाद गर्ल फ्रेंड
मिलनी बंद हो गयी उसी तरह किसी भी लिंक में ऐसा कोई मैजिक नहीं मिलता कि
मैं अपने पैरों पर खड़ा हो जाऊं।

अपने पैरों पर चलने वाला आदमी अगर उसकी ये बात सुनता तो शायद कहता बाथरूम
जाने तक में मदद चाहिए और सपने गर्ल फ्रेंड के देखता है लेकिन मैं जानती
हूँ मन के पाँव कभी व्हील चेयर पर नहीं आते। वो हमेशा संगी/संगिनी की
तलाश में रहता है, कोई ऐसा जो उसे गले लगाए कहे ‘मुझे तुमसे प्यार है’।

उसकी बातें सुन कर मैं उसे गले लगा कर कहना चाहती थी ‘अंशुमन मैं हूँ
न...’ लेकिन हमदोनों के बीच दो व्हील चेयर की दूरी मुझे कभी ऐसा कहने
नहीं देगी।

अब अंशुमन ट्रेंड हो चुका है खुद ड्राइविंग करता है, अपने ज्यादातर काम
खुद करता है। अब वो यहाँ नहीं आता...
पता नहीं उसके सपने उसे कहाँ तक ले गए।

1 comment:

  1. बहुत ही सजीव। इसमें एक बेबाकी है, व्हील चेयर का सच।

    ReplyDelete