Sunday, 4 September 2016

भांति भांति के राधेश्याम



चित्र साभार गूगल से

भांति-भांति के राधे-श्याम 
ये आलेख फिल्मकार बुद्ददेब दासगुप्ता द्वारा बांग्ला में लिखी गयी है .....
पत्नी भाग जाये तो पुरुष का मान-सम्मान नहीं रह जाता, लेकिन पुरुष भी भाग जाते हैं दुसरे की पत्नियों के साथ. ईला का पति भाग कर जाता है बेला के पास बेला का पति पड़ोस की मुक्ति के साथ भाग जाता है दीघा, फिर लौट के नही आता. पिताजी के मित्र डॉ मंडल बहुत ही भले मानस थे, लेकिन पता नही कैसे एक दिन देखा उनके दादाजी के मोह्गनी की अलमारी में घुन लग गया है. ये कीड़े हजम कर गये डॉ की पैंट शर्ट बनियान उनकी पत्नी के ब्लाउज पेटीकोट सब. उनके घर के विपरीत दिशा में ही एक बढई की दूकान.थी. उसे बुला कर दिखाया गया उसने कहा सामने का पल्ला दोनों तरफ की लकड़ी और ताक सब बदलना पड़ेगा. डॉ. राज़ी हो गये आखिर दादाजी के स्मृति में रखी अलमारी का सवाल था. दुसरे दिन सवेरे ही अपनी थैली ले कर हाज़िर हो गया अधेढ़ उम्र का सूनी आँखों वाला एक लकड़ी का मिस्त्री.
करीब दो साल पहले ही डॉ. मंडल के बेटे की शादी हुई थी घर में आई एक सुंदर सी बहू और साल भर बाद ही एक प्यारा सा पोता. मैं तब क्लास टेंथ में पढता था. एक दिन सुबह उठ कर देखता हूँ पिताजी का मुंह लटका हुआ तनाव में माँ का चेहरा तो उनसे भी ज्यादा.... डॉ. मंडल की पुत्रवधू कहीं नही मिल रही और वो लकड़ी का मिस्त्री भी गायब है उसका थैला वहीँ पड़ा है जिसमे उसके सारे औजार है और बिस्तर पर पड़ा हुआ है डॉ. का छोटा सा पोता.
सारे मोहल्ले में थू थू होने लगी, चेम्बर और घर में ताला लगा कर डॉ, मंडल अपने बेटे पोता और पत्नी को को ले कर चले गये अपने पैतृक गाँव और फिर कभी लौट कर नहीं आये.
बहुत, बहुत साल बीत गये एक दिन किसी जगह से कोलकाता वापस लौट रहा था, रास्ते में एक छोटा सा बस्तीनुमा शहर पड़ा. वहां चाय पीने के लिए गाड़ी रोक दी. चाय और कुछ बिस्किट आर्डर करने जिस छोटे से दुकान जैसी जगह पर आया वहाँ एक औरत चाय बना रही थी उसे देखते ही मैं चौंक गया उसके पीछे एक बुढा बैठा हुआ बांसुरी बजा रहा था. मुझे चाय दे कर वो फिर से स्टोव पर चाय का पानी चढाने लगी वो महिला मतलब डॉ. मंडल के घर से भागी हुई उनकी पुत्रवधू. इतनी उम्र में भी , उस औरत का रूप लावण्य उसे छोड़ कर नहीं गया था इसका कारण शायद बांसुरी बजाता वो बुढा ही होगा, जो पेशे से बढई था. फिर चाय के लिए बोला, उसके बाद फिर एक कप उसके बाद और तीन कप चाय पीने के बाद मैंने अपना परिचय दिया. मैं बोला, पता है, बहुत कोशिश के बाद भी कोई ये कारण नहीं जान सका, सब कुछ छोड़छाड़ कर आप इस बूढ़े के साथ क्यों निकल गयी.
वो महिला धीरे धीरे बताने लगी, अलमारी ठीक करते समय ये काम के बीच बीच में बांसुरी निकाल कर बजाता था, बचपन से ही मुझे बांसुरी बजाने का शौक था लेकिन घर से किसी ने सिखने नहीं दिया. औरत जात बांसुरी क्या बजाएगी! शादी के बाद पति को बहुत मनाने की कोशिश करती रही की मुझे बांसुरी सीखने दो.. एक दिन थप्पड़ मार कर उसने भी सीखा दिया की बांसुरी मेरे लिए नहीं.
ये मिला तो इसने मुझे बांसुरी बजाना सिखाया. अभी तक सिखाता है. क्या होगा पक्का मकान और पेट भरने के तरह तरह के पकवानों से जबकि मेरा मन तो खाली ही रहता था. शाम को यहाँ हम दोनों मिल कर बांसुरी बजाते है, बहुत से लोग सुनने आते है, मन आनन्द से भरा रहता है.
पेरिस से लगभग चार घंटे लगते है वेसुल जाने में, अन्तराष्ट्रीय स्तर का फिल्म फेस्टिवल आयोजन होता है. जिसके संचालक मार्टिन और उसके पति जाँ-मार्क हैं. दोनों वेसुल में रहने के बावजूद एक दुसरे को बैंकोक में मिलने से पहले नहीं पहचानते थे. पटाया के समुद्र किनारे अकेली बैठी थी मार्टिन और वहीँ पास ही कहीं बैठा था अकेला जाँ- मार्क. उसके बाद पता नहीं कैसे विधाता की इच्छा से दोनों का परिचय हुआ. किससे शादी की जाए यही सोचते हुए दोनों के इतने सारे साल यूँ ही निकल गये थे. बातें करते करते दोनों को पता चला की वो दोनों ही पागलों की तरह सिनेमा से प्यार करते है. दोनों ही स्कूल में पढ़ाते हैं, सैलरी आदि जो मिलती है उससे किसी तरह चल जाता है लेकिन उससे ज्यादा नहीं. वेसुल लौट कर दोनों ने शादी कर ली, सिनेमा को साक्षी मान कर. उसके बाद हुआ एक सपने का जन्म. कोई सहारा नही सम्बल नही, अमीर यार दोस्त भी नही. है तो सिर्फ वो एक सपना.... वेसुल में फिल्म फेस्टिवल शुरू करना है. पता नहीं कैसे उन दोनों ने वेसुल में फेस्टिवल की शुरुआत कर ही दी. बहुत मान-अपमान,कहा-सुनी के बीच से भी फिल्म फेस्टिवल के सपने को उन्होंने आकार दे ही दिया.
उनके घर में ही फिल्म फेस्टिवल का ऑफिस था , एक दिन मैं इन्टरनेट पर काम कर रहा था वहीँ बैठ कर , देखा मार्टिन रोते हुए अंदर आई उसके आंसू थम नही रहे थे, पीछे पीछे जाँ भी आया. उसकी आँखों में भी पानी था लेकिन वो लगातार मार्टिन को सांत्वना दे रहा था. क्या हुआ? पता चला एक प्रसिद्ध म्यूजिशियन की रील अभी तक पेरिस से यहाँ नहीं पहुंची है. शो शुरू होने का टाइम साढ़े पांच था छह बजने को हैं. दोनों की आँखों के आंसू रुक नही रहे थे मैं चुपचाप बाहर चला गया.... उसी वक्त समझ गया था दोनों में से कोई किसी को छोड़ कर कभी नही जा सकेगा दोनों ही सिनेमाप्रेम के एक अद्भुत जंजीर से बंधे है.
करीब तीस साल पहले होनोलुलु में मेरी मुलाकात जेनेट पोलसन से हुई थी. जेनेट तब एयर होस्टेस थी लेकिन प्लेन में चढ़ते ही उसे रोना आने लगता. डर के कारण नही बल्कि जो करना चाह रही थी वो न कर पाने के दुःख में. उसने नाटक और सिनेमा से प्यार किया था. उसके घर जा कर देखा था नाटक कविता कहानी की किताबो और पोस्टर से घर भरा हुआ था. कुछ दिनों बाद सुना अपनी ये नौकरी छोड़ बैंक से लोन ले कर सिनेमा विषय पर यूनिवर्सिटी में पढाई करने गयी है जेनेट. जेनेट का पति था , बेटी थी पर कुछ था जो जेनेट का नहीं था.
विली, फिजी-आई लैंड का लड़का था. वहां से नाटक विषय पर पढने आया था होनुलुलू. होनुलुलू फिल्म फेस्टिवल से उस समय मैं भी जुड़ा हुआ था, करीब 6-7 बार जाना हुआ. जेनेट तब तक उस फिल्म फेस्टिवल की डायरेक्टर बन चुकी थी. हम दोनों ही अधेड़ उम्र के हो चुके थे, उसने मुझे बताया की वो विली से शादी कर रही है, पति से बहुत पहले ही separation हो चुका था. विली जेनेट से छब्बीस साल और जेनेट की बेटी से दो साल छोटा है. विली को तब जस्ट पढ़ाने का काम मिला था इस्ट वेस्ट यूनिवर्सिटी में और वो नाटक के लिए ग्रुप बनाने का काम भी कर रहा था.
आखरी बार जब होनुलुलू गया तब उनके घर पर ही ठहरा था. विली जब पढ़ाने चला जाता जेनेट तब अपने मन के डर की बात मुझसे कहती. विली तो अभी बहुत छोटा है एकदम जवान है कोई और लड़की आ कर उसे अगर मुझसे दूर ले जाएगी तो..... जेनेट की तो उम्र हो गयी है. एक शाम मैं और विली टहलने निकले. बहुत दूर तक हम निकल आये टहलते हुए, वहीँ एक पेड़ दिखा कर विली ने कहा था , जानते हो यही हमारी शादी हुई थी, और इसी पेड़ के नीचे हमने हमारा पहला नाटक खेला था.
अभी कुछ दिन हुए जेनेट ने इ-मेल कर के मुझे बताया की एक बिलकुल नया एक्सपेरिमेंटल काम शुरू किया है दोनों नें. जिसमे एकक अभिव्यक्ति के साथ घुलमिल गयी है सिनेमा के कुछ दृश्य, शब्द और उनके अपने जीवन की कुछ सत्य घटनाएं. जेनेट को अब और डर नहीं लगता.स्टेज उन दोनो को एक ऐसे मायाबंधन में बाँध रखा है जहाँ उम्र या दुसरे ऐसे किसी चीजों का कोई महत्व ही नहीं.
सपना प्यार खोजता है और प्यार सपने की तलाश में भटकता है. जो प्रेम, पसंदीदा काम के बीच पंख फैलाता है वो प्रेम सम्बन्ध स्मृति में रह जाता है हमेशा के लिए. यहाँ उम्र, रूप, समाज, देश कुछ भी फर्क नहीं ला सकता.
कुछ गलत कहा मैंने??

1 comment:

  1. बिल्कुल सही कहा है। जीवन में बिखरे पड़े ऐसे उदाहरण प्रेम को एक नए दृष्टिकोण से समझने में सहायक होते हैं...

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