कहीं पढ़ा था शरतचंद्र ने अपनी सबसे प्रसिद्ध रचना “देवदास” के बारे में लिखा था कि उन्हें अफ़सोस है उन्होंने देवदास जैसे चरित्र की रचना की।
शायद समाज को देव जैसे चरित्र का परिचय नायक के रूप में नहीं देना चाहते थे लेकिन कालांतर में देखिये यही सबसे पसंदीदा चरित्र बन गया यही नहीं प्रेम अस्वीकार किये जाने पर पारु को गुस्से में चोट पहुँचाने को भी प्रेम की अभिव्यक्ति ही समझा गया।कुछ पुरुषों में ऐसी मानसिक विकृति हमेशा से रही है चाहे वो उपन्यास का चरित्र ‘देब’ हो या आज का एसिड अटैकर!
सुनो पार्वती, इतना सुंदर होना अच्छा नहीं। अहंकार बढ़ जाता है। गले का स्वर थोड़ा नीचे कर के बोला, देखती नहीं, चाँद का ऐसा रूप है तभी तो उस पर भी कलंक का काला दाग है; कमल इतना सफ़ेद है तभी तो काला भंवरा उस पर बैठा रहता है। आओ, तुम्हारे चेहरे पर भी थोड़ा दाग लगा दूँ।
.... वो अपनी मुट्ठी में मछली मारने की बंसी कस कर पकड़ा और ज़ोर से घुमा कर पार्वती के माथे पर आघात किया; तुरन्त ही माथे से ले कर बायीं भौं के नीचे तक चीर गया। देखते ही देखते पूरा चेहरा खून से भर गया।
पार्वती ज़मीन पर गिर पड़ी और बोली, देबदा, ये क्या किया!
.... छी! ऐसा मत करो पारू।
शेष-विदा के क्षणों में बस याद रखने जितना एक चिन्ह छोड़े जा रहा हूँ।ऐसा सोने जैसा चेहरा कभी-कभी तो आईने में देखोगी न?....
ऊपर लिखा संवाद कितने ही लोगों ने पढ़ा होगा। क्या किसी ने कभी देवदास को विलेन करार दे कर उसे कितने साल जेल कितनी बार फाँसी होनी चाहिए इस पर कोई व्यख्यान दिया है? कभी फेमिनिस्टों को लगा, ये एक नारी के प्रति नर का अत्याचार है? या कि सभी ने इसे एक प्रेमी का प्रेमिका के प्रति व्याकुल उन्माद प्रेम-चाबूक के तौर पर ही स्वीकार लिया। या कि प्रेम की महान खुजलीज्वाला का प्रतिक स्वरुप, पाने की इच्छा और न पाने की वेदना के कॉकटेल के तौर पर, अपने अधिकारबोध और दूसरे पक्ष के अस्वीकार्यता के धक्के से दिशाज्ञानशून्य अक्रोशी प्रेम रूप मान कर पाठकों के हृदय में स्वर्णाक्षर में छप गयी और ब्लॉकबस्टर हिट फ़िल्म की अमर पोस्टर बन कर दर्शकों के मानसपटल पर हमेशा के लिए छा गयी!
अगर ऐसा ही है तो मेरे समय में इतनी काई-किचिर क्यों मची है? मैंने तो बस इसी सीन को थोड़ा सा बढ़ा-चढ़ा लिया है। बंसी की जगह एसिड। थोड़ा सा दाग करने की बजाय पूरे चेहरे को जला कर वीभत्स कर दिया .... सिर्फ डिग्री का फर्क है, लेकिन उद्देश्य तो एक ही है।
फॉलो करते हुए रांची से धनबाद फिर वहां से मुम्बई पहुँच गया। उसके आने-जाने के समय पर थोड़ा नज़र रखने के बाद एक दिन बस स्टैंड पर ही उसके चेहरे पर एसिड फेंका। फेंकना ही पड़ा क्या करता! वो मेरे पड़ोस में रहती थी मैं उसके प्यार में पागल था, उसे प्रेम प्रस्ताव दिया लेकिन उसने लौटा दिया।
इतनी हिम्मत उसकी! नहीं.... नहीं!
हिम्मत से भी ज़्यादा उसकी इतनी निर्दयता, असंवेदनशीलता। मैं उसके लिये रो-रो कर आँखे अंधी कर ले रहा हूँ, रात भर जाग कर छटपटाता रहता हूँ, उसकी याद में न किताबें पढ़ पाता हूँ और न ही सिनेमा देखने में दिल लगता है.... तो क्या वो एक बार मेरी हालत पर नज़र भी नहीं डालेगी?
जब मैं कह रहा हूँ कि तुमसे प्यार करता हूँ तब कितना कमज़ोर और कितना असहाय हो कर खुद को उसके सामने झुका कर कहता हूँ! प्यार में इतना असहाय हो कर लड़का आये और जो लड़की उसे लौटा दे, उसके अंदर क्या इंसान का दिल हो सकता है? या कि लोहे का टुकड़ा रखा है? जिसमे परिकथा का वो आईना बंधा है जिसमे सिर्फ अपना ही सुंदर चेहरा दिखता है किसी और की छाया भी नहीं पड़ती। पड़ोस का एक लड़का उसके लिए तड़प-तड़प कर मरा जा रहा है ये देख कर भी जिसके दिल में दया नहीं आती, उसके चेहरे का ऐसा सौंदर्य दरअसल उसके काले कुत्सित अहंकारी मन का स्क्रीन सेवर भर ही है।
समझ में नहीं आता लड़कियों को इतना घमण्ड आखिर किस चीज़ का है? लड़के प्रपोज़ करते हैं तो वो लोग कैसे “ना” बोल देती है?
हमारे देश की जो महान प्रथा है—रिश्ता तय कर के विवाह होना.... वहां तो न बोलने का कोई प्रश्न नहीं उठता। माँ बाप जिसे पसंद कर दें उसी के गले में माला पहनाना ही पड़ता है। हाँ आजकल कुछ मोडर्न बनी फॅमिली में लड़की की इच्छा भी पूछ लेते है लेकिन असल में सिस्टम ऐसा नहीं है। परिवार जिसे अच्छा समझेगा तुम्हे उससे ही प्रेम करना होगा। ये तो खूब मान लेती हो, और प्रेम-प्रस्ताव मान लेने में बुखार आने लगता है?
रिश्तेवाली, शादी में तुम एक प्रेमविहीन सम्बन्ध में आराम से प्रवेश कर जा रही थी, कि बाद में प्रेम करना सीख लोगी और यहां तो फिफ्टी परसेंट प्रेम हुआ ही पड़ा है बाकि फिफ्टी परसेंट तुम बाद में सीख लोगी सोच कर घूमना-फिरना शुरू नहीं कर सकती हो? उपन्यास और फिल्मों की तरह का प्रेम कितनों को नसीब होता है जहां एक बिजली चमकते ही दोनों के दिल एकसाथ धड़क उठे और प्यार हो जाये?
ज़्यादातर तो ऐसा ही होता है, एक जन प्रेम करेगा दूसरा उसके आग्रह को समझ धीरे-धीरे उसकी इच्छा को अपनाने लगेगा। तो फिर जब मैंने शादी की बात रखी तो तुमने ”ना” क्यों कहा? मैं नौकरी नहीं खोजता, सुंदर नहीं इसलिए?
ऐसा ही है तब तो तुम्हारी सोच दोगली है। सेफ-खेलना चाहती हो। तुम रुपया पैसा देख रही हो, सुरक्षा देख रही, बाहरी सुंदरता देख रही हो.... तब तो तुम्हे सज़ा मिलनी ही चाहिए।
सोच कर ही इतना अच्छा लगता है, मेरे जैसा, मैं अकेला नहीं, आज इस देश में हज़ार-हज़ार पुरुष मेरे भाई-बिरादर है जो लड़कियों पर एसिड फेंक रहे। ये देश प्रेमियों का देश है। हमलोग टोंट करते हैं, पीछा करते हैं, हाथ भी पकड़ लेते हैं, सरेआम ज़बरदस्ती चुम्बन भी... विरोध करने पर पिटते हैं, एसिड फेंकते हैं बलात्कार भी करते हैं, क्योंकि हमने प्यार किया है। पागलों की भाँति प्यार बहुत प्यार! इसलिए मेरी इच्छा मुताबिक अगर मुझे वो नहीं मिलेगी तो उसे किसी और की भी नहीं होने दे सकता। मेरे प्यार को जिसने नहीं समझा, उसे कभी किसी और का प्यार नसीब न हों इसकी व्यवस्था भी मैं खुद करूँगा। ठीक है.... मुझे फांसी होगी लेकिन ये उत्तराधिकार रह ही जायेगा।
‘पारु बाद में मन ही मन बोली थी, देबदा! ये दाग ही मेरे लिए सांत्वना है, यही मेरा आधार। तुम मुझे चाहते थे तभी तो हमारे बाल्य-प्रेम का इतिहास मेरे ललाट पर लिख गए। वो मेरी लज्जा नहीं कलंक नहीं मेरे गौरव का साम्राज्य और मैं सम्राज्ञी।‘
एक्सक्टली! तुम्हे कोई इतना चाहता है, मरने की हद तक चाहता है उसका प्यार अब ज़िद बन चूका है एकमात्र उद्देश्य बन गया है, इसमें इतना चिढ़ने और परेशान होने से कैसे चलेगा बोलो?
इससे तो तुम्हे अपने अस्तित्व को ही धन्य समझना चाहिए। गर्व होना चाहिये! इंसान किसका होता है? जो प्रेम करे उसका ही न.... इसीलिए जिस लड़की को देख मेरा दिल तड़प उठा है वो निश्चित ही सिर्फ मेरी है। मुझे हक़ है,ज़रूरत पड़े तो मैं उसे श्रीहीन कर दूँ। इसके अतिरिक्त ईगो व्यक्ति का सर्वनाश कर देता है, एसिड इस अहं को गला कर रख देता है और लड़कियों को समझा देता है, ज्यों ही रूप चला जाये फिर उसका कोई मोल नहीं रह जाता। अब न उसे अच्छी नौकरी मिलेगी और न ही दूल्हा। उसे देखते ही लोग सिहर उठेंगे और बच्चे चीख कर रो पड़ेंगे। इस महादहन के बाद ही नारी अपना सही स्थान समझ पायेगी। सत्य यही है स्त्री का सम्मान पुरुष की मुग्धता में ही है, उसका स्थान पुरुष के कामुक आलिंगन में है। अगर यह अच्छी तरह समझ जाओ तो बस.....
एसिड टेस्ट पास हो गयी......
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